उघरि आयौ परदेसी कौ नेहु।
तब जु सबै मिलि कान्ह कान्ह करि फूलति ही अब लेहु।।
काहे कौ सखि अपनौ सरबस हाथ पराऐं देहु।
उन जु महा ठग मथुरा छाँड़ी जाइ समद कियौ गेहु।।
कह अब करौ अगिनि तनु उपजी बाढ्यौ अति संदेहु।
'सूरदास' बिहवल भई गोपी नैननि बरषत मेहु।। 4260।।