उद्धव! राधा-सी अभागिनी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग शिवरञ्जनी - ताल कहरवा


उद्धव ! राधा-सी अभागिनी, दुःखभागिनी, पापिनि कौन ?
जिसको छोड़, मधुपुरी जाकर माधव मधुर हो गये मौन !
ऐसी प्रिय-वियोगिनी तरुणी मेरे सिवा न को‌ई और।
प्रिय-बिछोह में शून्य दीखते जिसको सभी काल, सब ठौर॥
पल-पलमें बढ़ता जाता है दारुण-से-दारुण उर-दाह।
सूखे कण्ठ-तालु सब जिसके, निकल न पाती मुखसे आह॥
प्रियतमके वियोग की ज्वालामें कैसा भीषण उत्ताप।
कर न सकेगा उसका को‌ई, कभी कल्पना से भी माप॥
मेरे मनकी विषम वेदना रहती मनमें ही अव्यक्त।
भाषा नहीं पहुँच पाती है, शब्द नहीं कर पाते व्यक्त॥
कैसे किसे सुनाऊँ, उद्धव ! मैं अपने मनकी यह बात।
कौन बोध देकर कर सकता शीतल मेरे जलते गात॥
दुखी न हो‌ओ देख मुझे तुम, जा‌ओ, उद्धव ! हरिके पास।
झुलसा दें न कहीं ये मेरे तुहें घोर संतापी श्वास॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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