उद्धवजी ! हम समझ न पायीं -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग देशकार - ताल कहरवा


’उद्धवजी ! हम समझ न पायीं आप सुनाते किसका हाल।
कौन ब्रह्म व्यापक निर्गुण निरुपाधि कुवलयाके हैं काल॥
आकर श्री‌अक्रूर ले गये जिनको मथुरा अपने संग।
रजक-प्राण हर, बसन पहनकर, किया जिन्होंने धनुका भङ्ग॥
होंगे को‌ई वीर जिन्होंने मार दिये मुष्टिक-चाणूर।
वधकर कंस नरेश किये वसुदेव-देवकी के दुख दूर॥
नहीं जानते उद्धवजी ! वे प्रियतम श्याम नित्य मनचोर।
रहते आठों याम हमारे भीतर-बाहर शुचि सब ओर॥
ललित त्रिभङ्ग-‌अङ्ग सुषमा-निधि गुण-निधि शुचि सौन्दर्य-निधान।
नव-नव नित माधुर्य, मुरलिधर, मोर-मुकुटधर, शोभा-खान॥
गुजमाल, लकुटी कर शोभित, अधरोंपर मधुमय मुसकान।
वन-वन विचरण कर, देते वे जीवमात्र को शुचि रस-दान॥
आते सदा घरों में प्यारे, खाते वे नित माखन चोर।
देख-देख उनकी लीला हम रहतीं नित आनन्द-विभोर॥
कालिन्दी के कूल खेलते मधुर मनोहर रचते रास।
निभृत निकुजों में लीला कर मधुर बढ़ाते अति उल्लास॥
नहीं जानतीं हम वे क्या हैं ? ब्रह्म परात्पर अज अखिलेश !
हम तो नित्य देखतीं पातीं उनको निज प्रियतम हृदयेश !
श्रीवसुदेव-देवकी के हैं कौन सुपुत्र तेज-बल-धाम ?
नन्द-यशोदा के लाला हैं मधुर हमारे तो घनश्याम !
वे न छोड़ सकते हैं हमको, हम न छोड़ सकतीं पल एक।
रहते सदा मिले वे प्रियतम, भूल सभी कुछ त्याग-विवेक॥
नहीं चाहतीं भोग-मोक्ष कुछ, करतीं नहीं धारणा-ध्यान।
जब प्रियतम का संग प्राप्त है नित्य मधुरतम अव्यवधान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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