इहि तेरै वृंदाबन बाग।
सुनि राधिका कदंब बिटप की साखा, एक अमी फल लाग।।
स्याम अरुन कछु अधिक पीत छबि, बरनि जाइ नहिं अंगबिभाग।
अति सुपक्क मुरली कै परसत, चुइ चुइ परत उमँगि रस राग।।
ब्रज बनिता बर बारि कनकमय, रोके रहतिं सुरासुर नाग।
तुव प्रताप छुइ सकत न सुंदरि, सुर सुनि मर्कट, कोकिल, काग।।
मैं मालिनि जतननि जल जुगयौ, सीचत स्वहथ परे कर दाग।
'सूर' सु स्रम उठि भेटि परस्पर, पिय पियूष पाए बड़भाग।।2772।।