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<center>'''लेखक- पं० श्रीगोपीनाथ जी कविराज, एम्० ए०, प्रिंसिपल, गवर्नमेण्ट-संस्कृत-कालेज, काशी'''</center> | <center>'''लेखक- पं० श्रीगोपीनाथ जी कविराज, एम्० ए०, प्रिंसिपल, गवर्नमेण्ट-संस्कृत-कालेज, काशी'''</center> | ||
'''जिज्ञासु–''' श्रीभगवान के देहतत्त्व के संबंध में मुझे कुछ पूछना है। आप आज्ञा दें तो पूछूँ।<br /> | '''जिज्ञासु–''' श्रीभगवान के देहतत्त्व के संबंध में मुझे कुछ पूछना है। आप आज्ञा दें तो पूछूँ।<br /> | ||
− | '''वक्ता–''' अवश्य, | + | '''वक्ता–''' अवश्य, निस्संकोच पूछ सकते हो। मैं जो कुछ जानता हूँ, तुम्हें बतलाने में त्रुटि नहीं करुंगा।<br /> |
'''जि–''' श्रीकृष्ण के देह के संबंध में आलोचना करते समय स्वभाव से ही भगवद्विग्रह के विषय में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि भगवान का विग्रह है या नहीं और है तो वह किस प्रकार का है ? यही मुख्य प्रश्न है। श्रीकृष्ण यदि भगवान के अवतार अथवा स्वयं भगवान थे तो उनकी जिस देह को संसार के लोग प्रत्यक्ष देखते थे उसका क्या स्वरूप था, उस देह के अतिरिक्त उनकी और कोई देह थी या नहीं, और थी तो वह किस प्रकार की थी, ऐसे बहुत से अवान्तर प्रश्नों के समाधान की भी आवश्यकता प्रतीत होती है। | '''जि–''' श्रीकृष्ण के देह के संबंध में आलोचना करते समय स्वभाव से ही भगवद्विग्रह के विषय में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि भगवान का विग्रह है या नहीं और है तो वह किस प्रकार का है ? यही मुख्य प्रश्न है। श्रीकृष्ण यदि भगवान के अवतार अथवा स्वयं भगवान थे तो उनकी जिस देह को संसार के लोग प्रत्यक्ष देखते थे उसका क्या स्वरूप था, उस देह के अतिरिक्त उनकी और कोई देह थी या नहीं, और थी तो वह किस प्रकार की थी, ऐसे बहुत से अवान्तर प्रश्नों के समाधान की भी आवश्यकता प्रतीत होती है। | ||
− | '''व–''' वत्स, भगवान के देह है और धाम भी है, यह वर्णन शास्त्रों में मिलता है। साथ ही ‘भगवान निराकार विशुद्ध | + | '''व–''' वत्स, भगवान के देह है और धाम भी है, यह वर्णन शास्त्रों में मिलता है। साथ ही ‘भगवान निराकार विशुद्ध चैतन्यमात्र हैं, उनमें किसी प्रकार के आकार का आरोप नहीं हो सकता, उनके नाम-धाम प्रभृति सभी कल्पित हैं’– यह भी शास्त्रीय सिद्धान्त है। ईश्वर साकार हैं या निराकार, इस बात को लेकर विवाद करने की आवश्यकता नहीं। जो अन्तर्दर्शी हैं, वे जानते हैं कि ईश्वर को साकार भी कहा जा सकता है और निराकार भी– पर वस्तुत: वे साकार और निराकार, इन दोनों प्रकार की कल्पनाओं से ही अतीत हैं। |
'''जि–''' गीता में ‘जन्म कर्म च में दिव्यम्, कहकर श्रीकृण ने अपने जन्म और कर्म दोनों को ‘दिव्य’ बतलाया है। अवश्य ही यह लीला-तत्त्व का विषय है। इससे मालूम होता है कि भगवान के अवतार रूप, जन्म अथवा कर्म दोनों ही असाधारण-अप्राकृत हैं। जन्म शब्द से यहाँ देहग्रहण समझना होगा। | '''जि–''' गीता में ‘जन्म कर्म च में दिव्यम्, कहकर श्रीकृण ने अपने जन्म और कर्म दोनों को ‘दिव्य’ बतलाया है। अवश्य ही यह लीला-तत्त्व का विषय है। इससे मालूम होता है कि भगवान के अवतार रूप, जन्म अथवा कर्म दोनों ही असाधारण-अप्राकृत हैं। जन्म शब्द से यहाँ देहग्रहण समझना होगा। |
11:45, 30 मार्च 2018 के समय का अवतरण
श्रीकृष्णांक
भगवद्विग्रह
जिज्ञासु– श्रीभगवान के देहतत्त्व के संबंध में मुझे कुछ पूछना है। आप आज्ञा दें तो पूछूँ। व– वत्स, भगवान के देह है और धाम भी है, यह वर्णन शास्त्रों में मिलता है। साथ ही ‘भगवान निराकार विशुद्ध चैतन्यमात्र हैं, उनमें किसी प्रकार के आकार का आरोप नहीं हो सकता, उनके नाम-धाम प्रभृति सभी कल्पित हैं’– यह भी शास्त्रीय सिद्धान्त है। ईश्वर साकार हैं या निराकार, इस बात को लेकर विवाद करने की आवश्यकता नहीं। जो अन्तर्दर्शी हैं, वे जानते हैं कि ईश्वर को साकार भी कहा जा सकता है और निराकार भी– पर वस्तुत: वे साकार और निराकार, इन दोनों प्रकार की कल्पनाओं से ही अतीत हैं। जि– गीता में ‘जन्म कर्म च में दिव्यम्, कहकर श्रीकृण ने अपने जन्म और कर्म दोनों को ‘दिव्य’ बतलाया है। अवश्य ही यह लीला-तत्त्व का विषय है। इससे मालूम होता है कि भगवान के अवतार रूप, जन्म अथवा कर्म दोनों ही असाधारण-अप्राकृत हैं। जन्म शब्द से यहाँ देहग्रहण समझना होगा। |