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<center>'''4- श्रीकृष्ण और कुब्जा'''</center> | <center>'''4- श्रीकृष्ण और कुब्जा'''</center> | ||
− | त्रिवक्रा नाम की एक गरीब कुबड़ी लड़की थी। वह अति सुगन्धित उबटन बनाकर नित्य कंस के यहाँ ले जाकर उसके शरीर पर मला करती थी। भगवान जब कंस के यहाँ जा रहे थे, उन्होंने कुब्जा को उबटन लेकर उधर ही जाते देखा और कहा ‘प्यारी त्रिवक्रा, क्या यह उबटन मेरे शरीर पर मल देगी।’ इन शब्दों से त्रिवक्रा की आँखें खुल गयीं और देखा कि बालक के रूप में सौन्दर्य सुधा सागर भगवान ही उसके सामने खडे़ हैं। वह बोली, ‘प्यारे कृष्ण ! त्रिभुवन में मुझे सबसे प्रिय तुम्हीं हो। इस बहुमूल्य उबटन से मलने के लिये तुमसे अधिक योग्य मैं किसको पाऊँगी ?’ | + | त्रिवक्रा नाम की एक गरीब कुबड़ी लड़की थी। वह अति सुगन्धित उबटन बनाकर नित्य कंस के यहाँ ले जाकर उसके शरीर पर मला करती थी। भगवान जब कंस के यहाँ जा रहे थे, उन्होंने कुब्जा को उबटन लेकर उधर ही जाते देखा और कहा ‘प्यारी त्रिवक्रा, क्या यह उबटन मेरे शरीर पर मल देगी।’ इन शब्दों से त्रिवक्रा की आँखें खुल गयीं और देखा कि बालक के रूप में सौन्दर्य सुधा सागर भगवान ही उसके सामने खडे़ हैं। वह बोली, ‘प्यारे कृष्ण ! त्रिभुवन में मुझे सबसे प्रिय तुम्हीं हो। इस बहुमूल्य उबटन से मलने के लिये तुमसे अधिक योग्य मैं किसको पाऊँगी?’ यह कहकर उसने वह उबटन भगवान की देह पर मल दिया और अत्यन्त विनम्र भाव से अतिशय प्रेम एवं भक्तिपूर्वक उनकी पूजा की। ज्यों ही वह पूजा करने के लिये झुकी भगवान ने अपने छोटे-छोटे चरणों को उसके पैरों पर रखकर अपनी नन्हीं-नन्हीं उँगलियों से बहुत धीरे से उसकी ठोड़ी को इस तरह दबाया कि उसकी कमर सीधी हो गयी। अब वह कुबड़ी त्रिवक्रा न रही, अपितु सुन्दरी त्रिवक्रा हो गयी। एक दूसरी गरीब औरत को भी भगवान ने रोगमुक्त किया था और उसके पूछने पर यह कहा था कि ‘तुम्हारे विश्वास ने ही तुम्हें नीरोग किया है।’ |
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− | यह कहकर उसने वह उबटन भगवान की देह पर मल दिया और अत्यन्त विनम्र भाव से अतिशय प्रेम एवं भक्तिपूर्वक उनकी पूजा की। ज्यों ही वह पूजा करने के लिये झुकी भगवान ने अपने छोटे-छोटे चरणों को उसके पैरों पर रखकर अपनी नन्हीं-नन्हीं उँगलियों से बहुत धीरे से उसकी ठोड़ी को इस तरह दबाया कि उसकी कमर सीधी हो गयी। | + | |
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17:35, 29 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण की कुछ लीलाएँ और उनसे शिक्षा
इतने में बालकों को भूख लगी और वे याज्ञिक ब्राह्मणों के पास जाकर खाने को माँगने लगे। परन्तु उन अभिमानी ब्राह्मणों ने इनकी बात नहीं सुनी। वे अपने कर्म में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने छोटे बालक के रूप में आये हुए प्रेमनिधि भगवान की ओर लक्ष्य भी नहीं किया। तब बालक उन ब्राह्मणों की स्त्रियों के पास गये। उन्होंने भगवान का नाम सुन रखा था और वे उनका दर्शन करने के लिये लालायित हो रही थीं। अतः उनके पास भोजन की जो कुछ भी सामग्री थी उसे लेकर वे तुरन्त भगवान के समीप पहुँची और उन्हें वह सामान दे दिया। उनके पतियों ने उन्हें बहुतेरा मना किया परन्तु उन्होंने उनकी एक भी नहीं सुनी। भगवान ने प्रेमपूर्वक उनका अभिनन्दन किया और उनकी दी हुई वस्तुओं को ग्रहण किया। साथ ही उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि जिनका मेरे प्रति प्रेम है उन्हें मुझसे मिलने के लिये घर बार छोड़कर आने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि मैं सर्वत्र विद्यमान हूँ। अपने स्वामियों और बाल बच्चों के साथ प्रेम करना तथा उनकी सेवा करना मेरे ही साथ प्रेम करना और मेरी ही सेवा करना है। त्रिवक्रा नाम की एक गरीब कुबड़ी लड़की थी। वह अति सुगन्धित उबटन बनाकर नित्य कंस के यहाँ ले जाकर उसके शरीर पर मला करती थी। भगवान जब कंस के यहाँ जा रहे थे, उन्होंने कुब्जा को उबटन लेकर उधर ही जाते देखा और कहा ‘प्यारी त्रिवक्रा, क्या यह उबटन मेरे शरीर पर मल देगी।’ इन शब्दों से त्रिवक्रा की आँखें खुल गयीं और देखा कि बालक के रूप में सौन्दर्य सुधा सागर भगवान ही उसके सामने खडे़ हैं। वह बोली, ‘प्यारे कृष्ण ! त्रिभुवन में मुझे सबसे प्रिय तुम्हीं हो। इस बहुमूल्य उबटन से मलने के लिये तुमसे अधिक योग्य मैं किसको पाऊँगी?’ यह कहकर उसने वह उबटन भगवान की देह पर मल दिया और अत्यन्त विनम्र भाव से अतिशय प्रेम एवं भक्तिपूर्वक उनकी पूजा की। ज्यों ही वह पूजा करने के लिये झुकी भगवान ने अपने छोटे-छोटे चरणों को उसके पैरों पर रखकर अपनी नन्हीं-नन्हीं उँगलियों से बहुत धीरे से उसकी ठोड़ी को इस तरह दबाया कि उसकी कमर सीधी हो गयी। अब वह कुबड़ी त्रिवक्रा न रही, अपितु सुन्दरी त्रिवक्रा हो गयी। एक दूसरी गरीब औरत को भी भगवान ने रोगमुक्त किया था और उसके पूछने पर यह कहा था कि ‘तुम्हारे विश्वास ने ही तुम्हें नीरोग किया है।’ |