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‘जन्म कर्म च मे दिव्यम’ इत्यादि। अतएव मैं तो आपकी उन लीलाओं का ही आस्वादन करती हूँ। अहो!<poem style="text-align:center;"> | ‘जन्म कर्म च मे दिव्यम’ इत्यादि। अतएव मैं तो आपकी उन लीलाओं का ही आस्वादन करती हूँ। अहो!<poem style="text-align:center;"> | ||
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जिस समय आप पर कुपित होकर गोपी श्रीयशोदाजी दही मथते-मथते मथानी को छोड़कर आपको पकड़ने के लिये हाथ में रस्सी लेकर चलीं थीं उस समय ‘माता मारेगी’- इस भय से भय को भी डराने वाली आपकी आँखें आँसू और कज्जल की कीच से भर गयीं थीं और आपने भय से अपने मुख को नीचे की ओर कर लिया था। | जिस समय आप पर कुपित होकर गोपी श्रीयशोदाजी दही मथते-मथते मथानी को छोड़कर आपको पकड़ने के लिये हाथ में रस्सी लेकर चलीं थीं उस समय ‘माता मारेगी’- इस भय से भय को भी डराने वाली आपकी आँखें आँसू और कज्जल की कीच से भर गयीं थीं और आपने भय से अपने मुख को नीचे की ओर कर लिया था। | ||
− | प्रभो ! आपकी वह बाललीला की अद्भुत अवस्था मुझे आज भी विस्मित कर रही है। यहाँ श्रीभगवान का भयभीत होना दिखलाकर श्रीकुन्तीजी ने यशोदाजी का ऐश्वर्य प्रकट किया है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि माता | + | प्रभो ! आपकी वह बाललीला की अद्भुत अवस्था मुझे आज भी विस्मित कर रही है। यहाँ श्रीभगवान का भयभीत होना दिखलाकर श्रीकुन्तीजी ने यशोदाजी का ऐश्वर्य प्रकट किया है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि माता श्रीयशोदा जी पूर्वोक्त क्रम के अनुसार श्रीनन्दबाबा से भी अधिक भाग्यवती हैं। भगवान की उस लीला से अपना विस्मय प्रकट करके कुन्ती जी ने यह भी प्रकट किया है कि आपका यशोदा मैया के सामने वह भय बनावटी नहीं था बल्कि वास्तविक था। क्योंकि यदि वे उसे केवल अनुकरण मात्र ही समझतीं तो उनके विस्मय का कोई कारण नहीं था। इससे जो लोग पूर्वोक्त श्लोक के विडम्बन शब्द का अर्थ अनुकरण करते हैं, उनका विचार कट जाता है। |
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17:20, 29 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार-प्रयोजन तथा परत्व
तिर्यक, मनुष्य, ऋषि और जलचर आदि में आपके वाराह, राम, नर, नारायण और मत्स्यादि अवतार। आ केवल विडम्बनामात्र हैं आपके चरित्र अति दिव्य हैं। जैसा कि स्वयं आप ही ने कहा है- ‘जन्म कर्म च मे दिव्यम’ इत्यादि। अतएव मैं तो आपकी उन लीलाओं का ही आस्वादन करती हूँ। अहो!
जिस समय आप पर कुपित होकर गोपी श्रीयशोदाजी दही मथते-मथते मथानी को छोड़कर आपको पकड़ने के लिये हाथ में रस्सी लेकर चलीं थीं उस समय ‘माता मारेगी’- इस भय से भय को भी डराने वाली आपकी आँखें आँसू और कज्जल की कीच से भर गयीं थीं और आपने भय से अपने मुख को नीचे की ओर कर लिया था। प्रभो ! आपकी वह बाललीला की अद्भुत अवस्था मुझे आज भी विस्मित कर रही है। यहाँ श्रीभगवान का भयभीत होना दिखलाकर श्रीकुन्तीजी ने यशोदाजी का ऐश्वर्य प्रकट किया है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि माता श्रीयशोदा जी पूर्वोक्त क्रम के अनुसार श्रीनन्दबाबा से भी अधिक भाग्यवती हैं। भगवान की उस लीला से अपना विस्मय प्रकट करके कुन्ती जी ने यह भी प्रकट किया है कि आपका यशोदा मैया के सामने वह भय बनावटी नहीं था बल्कि वास्तविक था। क्योंकि यदि वे उसे केवल अनुकरण मात्र ही समझतीं तो उनके विस्मय का कोई कारण नहीं था। इससे जो लोग पूर्वोक्त श्लोक के विडम्बन शब्द का अर्थ अनुकरण करते हैं, उनका विचार कट जाता है। |