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− | तदनन्तर श्रीभगवान की सहज दयालुता का स्मरण करती हुई | + | तदनन्तर श्रीभगवान की सहज दयालुता का स्मरण करती हुई कुन्ती जी कहने लगीं-<poem style="text-align:center;"> |
'''यथा हृषीकेश खलेन देवकी''' | '''यथा हृषीकेश खलेन देवकी''' | ||
− | '''कंसेन | + | '''कंसेन रुद्धातिचिरं शुचार्पिता।''' |
'''विमोचिताहं च सहात्मजा विभो''' | '''विमोचिताहं च सहात्मजा विभो''' | ||
'''त्वयैव नाथेन मुहुर्विपद्गणात्॥23॥'''<br /> | '''त्वयैव नाथेन मुहुर्विपद्गणात्॥23॥'''<br /> | ||
'''विषान्महाग्ने: पुरुषाददर्शना-''' | '''विषान्महाग्ने: पुरुषाददर्शना-''' | ||
− | '''दसत्सभाया | + | '''दसत्सभाया वनवासकृच्छ्रत:।''' |
− | '''मृधे | + | '''मृधे मृधेऽनेकमहारथास्त्रतो''' |
− | '''द्रौण्यस्त्रतश्चास्म | + | '''द्रौण्यस्त्रतश्चास्म हरेऽभिरक्षिता:॥24॥'''</poem> |
− | हे हृषीकेश ! दुष्ट कंस द्वारा बन्दीगृह में डाली हुई शोकमग्ना माता देवकी की आपने जिस प्रकार रक्षा की थी उसी प्रकार आप प्रभु ने मेरी और मेरे पुत्रों की बारम्बार विपत्तियों से रक्षा की है। जिस प्रकार आपने हमें विष से, लाक्षागृह की अग्नि से, हिडम्बादि राक्षसों से, दुर्योधनादि दुष्टों की सभा से, वनवास के क्लेशों से और बड़े-बड़े महारथियों के दारुण अस्त्रों से पद-पद पर बचाया था उसी प्रकार आज द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के शस्त्र से भी बचाया है। | + | हे हृषीकेश ! दुष्ट [[कंस]] द्वारा बन्दीगृह में डाली हुई शोकमग्ना माता देवकी की आपने जिस प्रकार रक्षा की थी उसी प्रकार आप प्रभु ने मेरी और मेरे पुत्रों की बारम्बार विपत्तियों से रक्षा की है। जिस प्रकार आपने हमें विष से, लाक्षागृह की अग्नि से, हिडम्बादि राक्षसों से, दुर्योधनादि दुष्टों की सभा से, वनवास के क्लेशों से और बड़े-बड़े महारथियों के दारुण अस्त्रों से पद-पद पर बचाया था उसी प्रकार आज द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के शस्त्र से भी बचाया है। |
− | प्रभो ! कंस की कैद में पड़ने से अवश्य ही आपकी माता देवकी को एक भयंकर आपत्ति का सामना करना पड़ा था, किन्तु मुझे तो पद-पद पर न जाने कितने कष्ट झेलने पड़े हैं। आपकी माता देवकीजी के हृदय में उस आपत्ति के समय में भी यह आनन्दप्रद आश्वासन था कि मेरे गर्भ से साक्षात परमात्मा प्रकट होने वाले हैं। अतः उस आपत्ति में भी वह महान् सम्पत्तिशालिनी थीं। उस विपत्ति की अवस्था में भी श्रीदेवकीजी के पति वसुदेवजी उनके पास उपस्थित थे। परन्तु में तो असहाया और अनाथा हूँ। | + | प्रभो ! कंस की कैद में पड़ने से अवश्य ही आपकी माता देवकी को एक भयंकर आपत्ति का सामना करना पड़ा था, किन्तु मुझे तो पद-पद पर न जाने कितने कष्ट झेलने पड़े हैं। आपकी माता देवकीजी के हृदय में उस आपत्ति के समय में भी यह आनन्दप्रद आश्वासन था कि मेरे गर्भ से साक्षात परमात्मा प्रकट होने वाले हैं। अतः उस आपत्ति में भी वह महान् सम्पत्तिशालिनी थीं। उस विपत्ति की अवस्था में भी श्रीदेवकीजी के पति वसुदेवजी उनके पास उपस्थित थे। परन्तु में तो असहाया और अनाथा हूँ। प्रभो ! यदि आप यह कहें कि तेरे साथ भी तो तेरे पाँचों पुत्र थे, सो हे नाथ ! मेरे वास्तविक पुत्ररत्न तो आप ही हैं, जिन्होंने बारम्बार मेरी रक्षा की, अन्य तुच्छ पुत्रों से मेरा क्या काम है? |
− | प्रभो ! यदि आप यह | + | |
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16:35, 29 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार-प्रयोजन तथा परत्व
तदनन्तर श्रीभगवान की सहज दयालुता का स्मरण करती हुई कुन्ती जी कहने लगीं- हे हृषीकेश ! दुष्ट कंस द्वारा बन्दीगृह में डाली हुई शोकमग्ना माता देवकी की आपने जिस प्रकार रक्षा की थी उसी प्रकार आप प्रभु ने मेरी और मेरे पुत्रों की बारम्बार विपत्तियों से रक्षा की है। जिस प्रकार आपने हमें विष से, लाक्षागृह की अग्नि से, हिडम्बादि राक्षसों से, दुर्योधनादि दुष्टों की सभा से, वनवास के क्लेशों से और बड़े-बड़े महारथियों के दारुण अस्त्रों से पद-पद पर बचाया था उसी प्रकार आज द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के शस्त्र से भी बचाया है। प्रभो ! कंस की कैद में पड़ने से अवश्य ही आपकी माता देवकी को एक भयंकर आपत्ति का सामना करना पड़ा था, किन्तु मुझे तो पद-पद पर न जाने कितने कष्ट झेलने पड़े हैं। आपकी माता देवकीजी के हृदय में उस आपत्ति के समय में भी यह आनन्दप्रद आश्वासन था कि मेरे गर्भ से साक्षात परमात्मा प्रकट होने वाले हैं। अतः उस आपत्ति में भी वह महान् सम्पत्तिशालिनी थीं। उस विपत्ति की अवस्था में भी श्रीदेवकीजी के पति वसुदेवजी उनके पास उपस्थित थे। परन्तु में तो असहाया और अनाथा हूँ। प्रभो ! यदि आप यह कहें कि तेरे साथ भी तो तेरे पाँचों पुत्र थे, सो हे नाथ ! मेरे वास्तविक पुत्ररत्न तो आप ही हैं, जिन्होंने बारम्बार मेरी रक्षा की, अन्य तुच्छ पुत्रों से मेरा क्या काम है? |