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− | आगे चलकर | + | आगे चलकर श्रीकुन्ती जी कहती हैं- हे भगवान ! जो सर्वज्ञ परमहंस मुनि हैं वे भी आपके लीला माधुर्य में आकर्षित हुए आपका मनन करते हैं, फिर भजन के तत्त्व को भी न जानने वाले लोग आपके लीलालास्य को क्या जानेंगे, फिर मैं तो स्त्री जाति हूँ, मेरी तो सामर्थ्य ही क्या ?<poem style="text-align:center;">'''तथा परमहंसानां मुनीनाममलात्मनाम्।''' |
'''भक्तियोगविद्यानार्थं कथं पश्यमहि स्त्रिय:॥'''</poem> | '''भक्तियोगविद्यानार्थं कथं पश्यमहि स्त्रिय:॥'''</poem> | ||
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'''नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नम:॥'''<br /> | '''नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नम:॥'''<br /> | ||
'''नम: पंकजनाभाय नम: पंकजमालिने।''' | '''नम: पंकजनाभाय नम: पंकजमालिने।''' | ||
− | '''नम: पंकजनेत्राय | + | '''नम: पंकजनेत्राय नमस्ते पंकजाड़्घ्रये॥'''</poem> |
− | ‘वसुदेव के पुत्र, देवकीनन्दन, नन्दकुमार श्रीगोविन्द को बार-बार नमस्कार है। जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ है, जो कमलों की माला धारण किये हुए हैं, जिनके कमल के सदृश सुन्दर नेत्र और चरण हैं, उन श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार है।’ | + | ‘वसुदेव के पुत्र, देवकीनन्दन, नन्दकुमार श्रीगोविन्द को बार-बार नमस्कार है। जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ है, जो कमलों की माला धारण किये हुए हैं, जिनके कमल के सदृश सुन्दर नेत्र और चरण हैं, उन श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार है।’ श्रीभगवान की रूप माधुरी का रसास्वादन करने वाले रसिक भक्तजन सभी परम धन्य हैं, परन्तु उनमें भी अधिक बड़भागिनी वे हैं जिन्हें श्रीभगवान से बन्धुत्व स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इसी भाव को प्रकाशित करते हुए श्रीकुन्तीजी ने भगवान को उपर्युक्त नामों से सम्बोधित करके उनकी स्तुति की है। |
− | श्रीभगवान की रूप माधुरी | + | |
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16:23, 29 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार-प्रयोजन तथा परत्व
आगे चलकर श्रीकुन्ती जी कहती हैं- हे भगवान ! जो सर्वज्ञ परमहंस मुनि हैं वे भी आपके लीला माधुर्य में आकर्षित हुए आपका मनन करते हैं, फिर भजन के तत्त्व को भी न जानने वाले लोग आपके लीलालास्य को क्या जानेंगे, फिर मैं तो स्त्री जाति हूँ, मेरी तो सामर्थ्य ही क्या ? तथा परमहंसानां मुनीनाममलात्मनाम्। ‘वसुदेव के पुत्र, देवकीनन्दन, नन्दकुमार श्रीगोविन्द को बार-बार नमस्कार है। जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ है, जो कमलों की माला धारण किये हुए हैं, जिनके कमल के सदृश सुन्दर नेत्र और चरण हैं, उन श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार है।’ श्रीभगवान की रूप माधुरी का रसास्वादन करने वाले रसिक भक्तजन सभी परम धन्य हैं, परन्तु उनमें भी अधिक बड़भागिनी वे हैं जिन्हें श्रीभगवान से बन्धुत्व स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इसी भाव को प्रकाशित करते हुए श्रीकुन्तीजी ने भगवान को उपर्युक्त नामों से सम्बोधित करके उनकी स्तुति की है। |