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− | महात्माजी ने अपनी प्रस्तावना में लिखा है - | + | महात्माजी ने अपनी प्रस्तावना में लिखा है- |
‘महाभारतकार ने भौतिक युद्ध की आवश्यकता सिद्ध नहीं की, उसकी निरर्थकता सिद्ध की है। विजेता से रुदन कराया है, पश्चाताप कराया है और दुःख के सिवा कुछ बाकी नहीं रखा।’ | ‘महाभारतकार ने भौतिक युद्ध की आवश्यकता सिद्ध नहीं की, उसकी निरर्थकता सिद्ध की है। विजेता से रुदन कराया है, पश्चाताप कराया है और दुःख के सिवा कुछ बाकी नहीं रखा।’ | ||
− | महात्माजी का यह निष्कर्ष भी बहुत ही विचित्र है। भौतिक लाभ की दृष्टि से भौतिक युद्ध की आवश्यकता महाभारतकार ने बहुत ही विस्तार से सिद्ध की है, महाभारत में अनेक उपाख्यान इसी अभिप्राय के हैं। उद्योगपर्व में कुन्ती का उत्तेजनापूर्ण उपदेश, विदुला की कथा इत्यादि इसके | + | महात्माजी का यह निष्कर्ष भी बहुत ही विचित्र है। भौतिक लाभ की दृष्टि से भौतिक युद्ध की आवश्यकता महाभारतकार ने बहुत ही विस्तार से सिद्ध की है, महाभारत में अनेक उपाख्यान इसी अभिप्राय के हैं। उद्योगपर्व में कुन्ती का उत्तेजनापूर्ण उपदेश, विदुला की कथा इत्यादि इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं।<br /> |
गीता में भगवान ने अर्जुन से स्पष्ट शब्दों मे कहा है-<poem style="text-align:center;"> | गीता में भगवान ने अर्जुन से स्पष्ट शब्दों मे कहा है-<poem style="text-align:center;"> | ||
− | '''हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा | + | '''हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्य से महीम्।''' |
− | '''तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय | + | '''तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥'''</poem> |
− | इससे अधिक युद्ध की आवश्यकता और किस प्रकार सिद्ध की जा सकती है ? रही विजेता से रुदन कराने की और दुःख के सिवा और कुछ बाकी न रखने की बात, सो यह केवल भौतिक युद्ध का ही नहीं, प्रत्युत संसार के सारे उद्योगों और आन्दोलनों का अन्तिम परिणाम यही रोना और पश्चाताप है, परमार्थ के विचार से भगवान कृष्णद्वैपायन ने यही निष्कर्ष निकाला है, जो उचित ही है। | + | इससे अधिक युद्ध की आवश्यकता और किस प्रकार सिद्ध की जा सकती है? रही विजेता से रुदन कराने की और दुःख के सिवा और कुछ बाकी न रखने की बात, सो यह केवल भौतिक युद्ध का ही नहीं, प्रत्युत संसार के सारे उद्योगों और आन्दोलनों का अन्तिम परिणाम यही रोना और पश्चाताप है, परमार्थ के विचार से भगवान कृष्णद्वैपायन ने यही निष्कर्ष निकाला है, जो उचित ही है। |
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15:53, 29 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण और महात्मा जी का अनासक्ति योग
महाभारत युद्ध भी काल्पनिक और गीता के श्रीकृष्ण भी काल्पनिक, यह बात मान लेने पर तो गीता का सारा चमत्कार ही नष्ट हो जाता है। आस्तिक हिन्दू की दृष्टि में गीता का महत्त्व इसीलिये सर्वाधिक है कि उसकी अवतारणा महाभारत के ऐतिहासिक युद्ध के अवसर पर कुरुक्षेत्र की पुण्यभूमि में षोडशकला-सम्पूर्ण अवतार साक्षात भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा हुई है। इतिहासमूलक इसी धार्मिक धारणा ने गीता को उस उच्च पद पर पहुँचाया है, जो उसे प्राप्त है। किसी काल्पनिक उपन्यास को यह पद कदापि प्राप्त नहीं हो सकता। महात्माजी ने अपनी प्रस्तावना में लिखा है- ‘महाभारतकार ने भौतिक युद्ध की आवश्यकता सिद्ध नहीं की, उसकी निरर्थकता सिद्ध की है। विजेता से रुदन कराया है, पश्चाताप कराया है और दुःख के सिवा कुछ बाकी नहीं रखा।’
महात्माजी का यह निष्कर्ष भी बहुत ही विचित्र है। भौतिक लाभ की दृष्टि से भौतिक युद्ध की आवश्यकता महाभारतकार ने बहुत ही विस्तार से सिद्ध की है, महाभारत में अनेक उपाख्यान इसी अभिप्राय के हैं। उद्योगपर्व में कुन्ती का उत्तेजनापूर्ण उपदेश, विदुला की कथा इत्यादि इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं। इससे अधिक युद्ध की आवश्यकता और किस प्रकार सिद्ध की जा सकती है? रही विजेता से रुदन कराने की और दुःख के सिवा और कुछ बाकी न रखने की बात, सो यह केवल भौतिक युद्ध का ही नहीं, प्रत्युत संसार के सारे उद्योगों और आन्दोलनों का अन्तिम परिणाम यही रोना और पश्चाताप है, परमार्थ के विचार से भगवान कृष्णद्वैपायन ने यही निष्कर्ष निकाला है, जो उचित ही है। |