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''''तारकाज्जायते मुक्ति: प्रेमभक्तिस्तु पारकादिति।,''' | ''''तारकाज्जायते मुक्ति: प्रेमभक्तिस्तु पारकादिति।,''' | ||
''''पूर्वमत्र मोचकत्व प्रेमदत्वाभ्यां तारकपारकसंज्ञे''' | ''''पूर्वमत्र मोचकत्व प्रेमदत्वाभ्यां तारकपारकसंज्ञे''' | ||
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'''किंच श्रीकृष्णनाम्नो माहात्मयं निगदेनैव श्रूयते प्रभासपुराणे''' | '''किंच श्रीकृष्णनाम्नो माहात्मयं निगदेनैव श्रूयते प्रभासपुराणे''' | ||
'''श्रीनारदकुशध्वजसंवादे श्रीभगवदुक्तो-'नाम्नां मुख्यतमं''' | '''श्रीनारदकुशध्वजसंवादे श्रीभगवदुक्तो-'नाम्नां मुख्यतमं''' | ||
− | '''नाम कृष्णाख्यं मे परन्तपेति | + | '''नाम कृष्णाख्यं मे परन्तपेति । तदेवं गति सामान्येन नाममहिमद्वारा''' |
− | '''तन्महिमातिशय: | + | '''तन्महिमातिशय: साधति:।'''</poem> |
− | - मुक्तिदाता होने के कारण राम-नाम को ‘तारक’ एवं प्रेमदाता होने के कारण ‘कृष्ण’ नाम को ‘पारक’ कहते हैं। तारक से मुक्ति एवं पारक से प्रेमभक्ति की प्रापित होती है। ‘राम’ नाम में मोचकताशक्ति अधिक है और ‘कृष्ण’ नाम में मोक्ष-सुख-तिरस्कारी | + | -मुक्तिदाता होने के कारण राम-नाम को ‘तारक’ एवं प्रेमदाता होने के कारण ‘कृष्ण’ नाम को ‘पारक’ कहते हैं। तारक से मुक्ति एवं पारक से प्रेमभक्ति की प्रापित होती है। ‘राम’ नाम में मोचकताशक्ति अधिक है और ‘कृष्ण’ नाम में मोक्ष-सुख-तिरस्कारी प्रेमानन्द-दातृत्वशक्ति अणिक है। श्रीविष्णु धर्मोत्तर में ऐसा ही कहा गया है- हे पुरुषव्याघ्र ! कोई शान्त हो या दुर्जय हो, |
श्रीनारायण के नाम की शक्ति अपनी शक्ति के अनुरूप फल प्रदान करती ही है। जिस नाम में प्रेमदान की प्रचुर शक्ति है, वह नाम आश्रित व्यक्ति के अपराध को दूर कर प्रेमदान करता है और जिस नाम में मोचकता शक्ति की प्रचुरता है, वह नाम मुक्ति प्रदान करता है। परन्तु मोक्ष प्रेम के समान साध्य फल नहीं है। नीरोगता या रोगरूप दुःख का अभाव मात्र ही सुख नहीं है। रोगमुक्ति के पश्चात् स्वास्थ्यवान के समान आहार-विहारादि रूप क्रिया ही सुखसाधक है और फिर मुक्ति तो श्रीकृष्ण के नामाभास से अनायास ही हो जाती है। इसीलिये श्रीकृष्णनाम-महिमा की अधिकता का वर्णन स्पष्ट रूप से सुना जाता है। | श्रीनारायण के नाम की शक्ति अपनी शक्ति के अनुरूप फल प्रदान करती ही है। जिस नाम में प्रेमदान की प्रचुर शक्ति है, वह नाम आश्रित व्यक्ति के अपराध को दूर कर प्रेमदान करता है और जिस नाम में मोचकता शक्ति की प्रचुरता है, वह नाम मुक्ति प्रदान करता है। परन्तु मोक्ष प्रेम के समान साध्य फल नहीं है। नीरोगता या रोगरूप दुःख का अभाव मात्र ही सुख नहीं है। रोगमुक्ति के पश्चात् स्वास्थ्यवान के समान आहार-विहारादि रूप क्रिया ही सुखसाधक है और फिर मुक्ति तो श्रीकृष्ण के नामाभास से अनायास ही हो जाती है। इसीलिये श्रीकृष्णनाम-महिमा की अधिकता का वर्णन स्पष्ट रूप से सुना जाता है। |
16:45, 26 मार्च 2018 का अवतरण
श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण-धारणा
इसीलिये श्रीकृष्ण भक्तराज शम्भु कहते हैं- -मुक्तिदाता होने के कारण राम-नाम को ‘तारक’ एवं प्रेमदाता होने के कारण ‘कृष्ण’ नाम को ‘पारक’ कहते हैं। तारक से मुक्ति एवं पारक से प्रेमभक्ति की प्रापित होती है। ‘राम’ नाम में मोचकताशक्ति अधिक है और ‘कृष्ण’ नाम में मोक्ष-सुख-तिरस्कारी प्रेमानन्द-दातृत्वशक्ति अणिक है। श्रीविष्णु धर्मोत्तर में ऐसा ही कहा गया है- हे पुरुषव्याघ्र ! कोई शान्त हो या दुर्जय हो, श्रीनारायण के नाम की शक्ति अपनी शक्ति के अनुरूप फल प्रदान करती ही है। जिस नाम में प्रेमदान की प्रचुर शक्ति है, वह नाम आश्रित व्यक्ति के अपराध को दूर कर प्रेमदान करता है और जिस नाम में मोचकता शक्ति की प्रचुरता है, वह नाम मुक्ति प्रदान करता है। परन्तु मोक्ष प्रेम के समान साध्य फल नहीं है। नीरोगता या रोगरूप दुःख का अभाव मात्र ही सुख नहीं है। रोगमुक्ति के पश्चात् स्वास्थ्यवान के समान आहार-विहारादि रूप क्रिया ही सुखसाधक है और फिर मुक्ति तो श्रीकृष्ण के नामाभास से अनायास ही हो जाती है। इसीलिये श्रीकृष्णनाम-महिमा की अधिकता का वर्णन स्पष्ट रूप से सुना जाता है। |