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'''प्रकाश केला गगनीं रवीनें। गोपी दधी त्या घुलसी रवीनें ।''' | '''प्रकाश केला गगनीं रवीनें। गोपी दधी त्या घुलसी रवीनें ।''' | ||
'''त्या कंकणांचे बहु नाद येती। गोविन्द दामोदर माधवेति ।।''' | '''त्या कंकणांचे बहु नाद येती। गोविन्द दामोदर माधवेति ।।''' | ||
− | '''कराबुजीं घेऊनियां शुकाला। अभ्यास गोपी करिती | + | '''कराबुजीं घेऊनियां शुकाला। अभ्यास गोपी करिती तयाला। ''' |
'''रागस्वरें सुंदर बोलवीती। गोविन्द दामोदर माधवेति ।।''' | '''रागस्वरें सुंदर बोलवीती। गोविन्द दामोदर माधवेति ।।''' | ||
'''गोदोहना बैसति गोपदारा। पात्रांतरीं वाजति क्षीरधारा ।''' | '''गोदोहना बैसति गोपदारा। पात्रांतरीं वाजति क्षीरधारा ।''' |
01:17, 1 सितम्बर 2017 का अवतरण
श्रीकृष्णांक
महाराष्ट्र में श्रीकृष्ण-भक्ति
वामन मोरोपन्त आदि महाकवि इनसे अधिक विद्वान हो सकते हैं, एकनाथ, तुकाराम आदि वैष्णवों की गर्जना इससे बढ़ी-चढ़ी रही होगी। पर देहात में श्रीधर के समान लोकप्रियता किसी की नहीं है। इस कवि का शरीर नाश हो चुका है, परनतु ग्रन्थ रुप से तो यह अजर-अमर हैं। मराठी में कृष्ण, गोपी, गोप, यमुना-विहार, बाल लीला आदि विषयों पर सैकड़ों कवियों ने हजारों सुन्दर काव्य रचे हैं और वे आबाल वृद्ध वनिता सभी के आदर भाजन हैं। प्रेमाबाई का– ‘गडे हो कृष्णगडी आपुला। राजा मथुरेचा झाला’ मध्वमुनीश्वरजी का ‘उद्धवा शांतवन कर जा या गोकुलवासि जनांचे’ कोकिल कवि का ‘रुक्मिणि ने एका तुलीसदला नें गिरिधर प्रभु तुलिला। दयाघन भक्तीं आकलिला’, एकनाथजी का ‘मुरली नको बाजवूं मनमोहना। जगजीवना’ तथा देवानाथादि कवियों के मुरली के अनेक रम्य पद और रामदास शिष्य अनंतजी का प्यारा ‘गोपी-गीत’ पद आदि हजारों फटकर काव्यों का समाज में खूब प्रचार है। उनसे श्रीकृष्ण भक्ति लोगों के राम-रोम में भर गयी है। गोपीगीत में से दो-चार चरण यहाँ उद्धृत किये बिना मन नहीं मानता- प्रभावतकालीं जननी यशोदा। उठि म्हणें सत्वर बा मुकुंदा । प्रात:काल के समय यशोदा माता भगवान को जगाती हैं- हे मुकुन्द ! जल्दी जाग, देख ये गोपाल आये हैं, तुझे गोविन्द दामोदर, माधव कहकर पुकार रहे हैं, सूर्यदेव की किरणें गगन मंडल में फैल गयी हैं, गोपियों ने दही मथना शुरु कर दिया है, जिनकी चूड़ियों से अनेक प्रकार की ध्वनियों के साथ गोविन्द दामोदर माधव शब्द उत्पन्न होते हैं। कुछ गोपियों ने हाथों पर तोते बैठा लिये हैं और उन्हें राग के साथ गोविन्द, दामोदर, माधव का पाठ पढ़ाती हैं, कुछ गो-दोहन कर रही हैं, उनके बरतन में दूध की धार से उठने वाले मंजुल शब्द के साथ वे गोविन्द, दामोदर, माधव आदि गीत गा रही हैं। मुझे तो ऐसा मालूम होता है कि यह मराठी वांगमय फाइनेस्ट लेरिक वीणा काव्य है। |