श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
ध्यानबहुत दिनों से विदेश गये हुए पति की पतिपरायणा पत्नी जैसे एकमात्र अपने पति का ही संग चाहती हुई दीनभाव से सदा-सर्वदा स्वामी के गुणों का चिन्तन, गान और श्रवण किया करती है, वैसे ही श्रीकृष्ण में आसक्तचित्त होकर साधक को श्रीकृष्ण के गुण-लीलादि का चिन्तन, गायन और श्रवण करते हुए ही समय बिताना चाहिये। और बहुत लंबे समय के बाद पति के घर आने पर जैसे पतिव्रता स्त्री अनन्य प्रेम के साथ तदगतचित्त होकर पति की सेवा, उसका आलिंगन आदि तथा नयनों के द्वारा उसके रूप सुधामृत का पान करती है, वैसे ही साधक को उपासना के समय शरीर, मन, वाणी से परमानन्द के साथ श्रीहरि की सेवा करनी चाहिये। एकमात्र श्रीकृष्ण के ही शरणापन्न होना चाहिये और वह भी श्रीकृष्ण के लिये ही, दूसरा कोई भी प्रयोजन न रहे। अनन्य मन से श्रीकृष्ण की सेवा करनी चाहिये। श्रीकृष्ण के सिवा न किसी की पूजा करनी चाहिये और न किसी की निन्दा। किसी का जूठा नहीं खाना चाहिये और न किसी का पहना हुआ वस्त्र ही पहनना चाहिये। भगवान की निन्दा करने वालों से न तो बातचीत करनी चाहिये और न भगवान और भक्तों की निन्दा सुननी ही चाहिये। जीवन भर चातकीवृत्ति से अर्थ समझते हुए युगल मन्त्र की उपासना करनी चाहिये। चातक जैसे सरोवर, नदी और समुद्र आदि सहज ही मिले हुए जलाशयों को छोड़कर एकमात्र मेघजल की आशा से प्यास से तड़पता हुआ जीवन बिताता है, प्राण चाहे चले जायँ पर मेघ के सिवा किसी दूसरे से जल की प्रार्थना नहीं करता, उसी प्रकार साधक को एकाग्र मन से एकमात्र श्रीकृष्णगतचित्त होकर साधना करनी चाहिये- परम विश्वास के साथ श्रीयुगलसरकार से निम्रलिखित प्रार्थना करनी चाहिये-
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