श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
ध्यानसुन्दर वृन्दावन में कल्पवृक्ष के नीचे सुरम्य रत्नसिंहासन पर भगवान श्रीकृष्ण श्रीप्रियाजी के साथ विराजमान हैं। श्रीकृष्ण का वर्ण नवजलधर के समान नील-श्याम है, पीताम्बर धारण किये हुए हैं, द्विभुज हैं, विविध रत्नों की और पुष्पों की मालाओं से विभूषित हैं, मुख मण्डल करोड़ों चन्द्रमाओं से भी सुन्दर है। तिरछे नेत्र हैं, ललाट पर मण्डलाकृति तिलक हैं, जो चारों ओर चन्दन से और बीच में कुकुंमबिन्दु से बनाये हुए हैं। कानों में सुन्दर कुण्डल शोभायमान हैं, उन्नत नासिका के अग्रभाग में मोती लटक रहा है। पके बिम्ब फल के समान अरुणवर्ण अधर हैं, जो दाँतों की प्रभा से चमक रहे हैं। भुजाओं में रत्नमय कड़े और बाजूबंद हैं और अॅंगुलियों में रत्नों की अँगूठियाँ शोभा पा रही हैं। बायें हाथ में मुरली और दाहिने में कमल लिये हुए हैं। कमर में मनोहर रत्नमयी करधनी है, चरणों में नूपूर सुशोभित हैं। बड़ी ही मनोहर अलकावली है, मस्तक पर मयूरपिच्छ शोभा पा रहा है। सिर में कनेर के पुष्पों के आभूषण हैं। भगवान की देहकान्ति नवोदित कोटि-कोटि दिवाकरों के सदृश स्त्रिग्ध ज्योतिर्मय है, उनके दर्पणोपम कपोल स्वेदकणों से सुशोभित हैं, चचंल नेत्र श्रीराधिकाजी की ओर लगे हुए हैं। वामभाग में श्रीराधिकाजी विराजिता हैं’ तपे हुए सोने के समान उनकी देहप्रभा है’ नील वस्त्र धारण किये हैं’ मन्द–मन्द मुसकरा रही हैं। चंच्चल नेत्रयुगल स्वामी के मुख चन्द्र की ओर लगे हुए है और चकोरी की भाँति उनके द्वारा वे श्याम-मुख-चन्द्र-सुधा का पान कर रही है। अंगष्ठ और तर्जनी अॅंगूली के द्वारा वे प्रियतम के मुखकमल में पान दे रही हैं। उनके गले में दिव्य रत्नों के और मुक्ताओं के हार हैं। क्षीण कटि करधनी से सुशोभित है। चरणों में नूपुर, कड़े और चरणागुलियों में अंगुरीय आदि शोभा पा रहे हैं। उनके अंग-प्रत्यंग से लावण्य छिटक रहा है। उनके चारों ओर तथा आगे-पीछे यथास्थान खड़ी हुई सखियाँ विविध प्रकार से सेवा कर रही हैं। श्रीराधिकाजी कृष्णमयी हैं, वे श्रीकृष्ण की आनन्दरूपिणी हृादिनी शक्ति हैं। त्रिगुणमयी दुर्गा आदि शक्तियाँ उनकी करोड़वीं कला के करोड़वें अंश के समान हैं। सब कुछ वस्तुतः श्रीराधाकृष्ण से ही भरा है। उनके सिवा और कुछ भी नहीं है। यह जड़-चेतन अखिल जगत श्रीराधाकृष्णमय है- परंतु वे इतने ही नहीं हैं- अनन्त ब्रह्माण्डों से परे हैं, सबसे परे हैं, सबके अधिष्ठान हैं, सब में हैं और सबसे सर्वथा विलक्षण हैं। यह श्रीकृष्ण का किंचित् ऐश्वर्य है। |
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