श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
गोपी भाव की साधनापद्मपुराण में भगवान श्रीशंकर ने देवर्षि नारदजी से श्रीराधाकृष्ण की उपासना, उनके स्वरूप और मन्त्रादि के विषय में बहुत रहस्य की बातें कही हैं- उनमें से कुछ यहाँ उद्धृत की जाती हैं। भगवान शिवजी कहते हैं- श्रीकृष्ण के ‘मन्त्रचिन्तामणि’ नामक दो अत्युत्तम मन्त्र हैं- एक षोडशाक्षर है और दूसरा दशाक्षर! मन्त्रषोडशाक्षर मन्त्र है- और दशाक्षर है- -इन मन्त्रों के अधिकारी सभी वर्णों के, सभी आश्रमों के और सभी जाति के वे स्त्री-पुरुषप हैं, जिनकी सर्वेश्वरेश्वर भगवान श्रीकृष्ण में भक्ति है- ‘भक्तिभवेदषां कृष्णे सर्वेश्वरेश्वरे’। श्रीकृष्ण भक्ति से रहित याज्ञिक, दानशील, तान्त्रिक, सत्यवादी, वेद-वेदागंपारग, कुलीन, तपस्वी, व्रती और ब्रह्मानिष्ठ- कोई भी इनके अधिकारी नहीं हैं। इसलिये ये मन्त्र श्रीकृष्ण के अभक्त, कृतन्घ, दुरभिमानी और श्रद्धारहित मनुष्यों को नहीं बतलाने चाहिये। दम्भ, लोभ, काम और क्रोधादि से रहित श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त को ही ये मन्त्र देने चाहिये। इनका यथाविधि न्यास करके श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिये। फिर उनका इस प्रकार ध्यान करना चाहिये- |
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