श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
कि कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् और भगवान वेदव्यासजी तथा ज्ञानिप्रवर शुकदेवजी महाराज इसी चरण को अपनी रचना में ग्रथितकर और गानकर इस सिद्धांत का सानन्द समर्थन करते हैं भगवान श्रीकृष्ण को नारायण ऋषि का अवतार कहा गया है। नर-नारायण ऋषियों ने धर्म के हृदय और दक्ष की कन्या मूर्ति के गर्भ से उत्पन्न होकर महान तप किया था। कामदेव अपनी सारी सेना समेत बड़ी चेष्टा करके भी इनके व्रत को भंग नहीं कर सका भागवत[1] ये दोनों भगवान श्रीविष्णु के अवतार थे। देवी भागवत में इन दोनों को (हरिरंशो) कहा गया है[2]और भागवत में कहा गया है कि भगवान ने चौथी बार धमकी कला से नर नारायण ऋषि के रुप में आविभूर्त होकर घोर तप किया था। भागवत और देवी भागवत मे इनकी कथा का विस्तार है महाभारत और भागवत में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन को कोई जगह नर नारायण अवतार बतलाया गया है।[3] आदि। दूसरे प्रमाण इस बात के भी मिलते हैं कि वे क्षीरसागर विवासी भगवान विष्णु के अवतार हैं। कारागार में जब भगवान प्रकट होते हैं, तब शंख-चक्र-गदा-पद्य धारी श्री विष्णु रूप से ही पहले प्रकट होते हैं तथा भागवत में गोपियों के प्रसंग में तथा अन्य स्थलों में उन्हे ‘लक्ष्मी-सेवितचरण’ कहा गया है, जिससे श्रीविष्णु का बोध होता है। भीष्म पर्व में ब्रह्माजी के वाक्य हैं।— हे देवतागणो। सारे जगत का प्रभु मैं इनका ज्येष्ठ पुत्र हूँ, अतएव—
‘सम्पूर्ण लोकों के महेश्वर इन वासुदेव की पुजा करनी चाहिये। हे श्रेष्ठ देवताओ! साधारण मनुष्य समझकर इनकी कभी अवज्ञा न करना। कारण, ये शंख-चक्र-गदाधारी महावीर्य (विष्णु) भगवान् हैं।’ जय-विजय की कथासे भी उनका विष्णु-अवतार होना सिद्ध है। इस विषय के और भी अनेक प्रमाण हैं। |
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ 2-7-8
- ↑ दे. भा. 4-5-15
- ↑ वनपर्व 40-12; भीष्मपर्व 66-11; उद्योग्पर्व 96-46 आदि; श्रीमभ्गवत 11-7-18; 10-81-32-33
- ↑ महा०भीष्म० 66।13-14
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