श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इसीलिये आज हम अपने को भगवान श्रीकृष्ण के वचनों का मानने वाला कहते हैं, परंतु भगवान श्रीकृष्ण को भगवान मानने में और उनके शब्दों का सीधा अर्थ करके हमारी बुद्धिमतार आघात लगता हुआ सा प्रतीत होता है। भगवान का सारा जीवन ही दिव्य लीलामय है, परंतु उनकी लीलाओं को समझना आज के हम सरीखे अश्रद्धालु मनुष्यों के लिये बहुत कठिन है- इसीलिए आजकल के लोग उनके दिव्यस्वरूपावतार पांचाली का चीर बढ़ाने, अर्जुन को विराट-स्वरूप दिखलाने और कौरवों की राजसभा मे विलक्ष्ण चमत्कार दिखलाने आदि लीलाओं पर संदेह करते हैं। वे यह नहीं सोचते कि जिन परमात्मा की माया ने जगत को मनुष्य की बुद्धि से अतीत नाना प्रकार के अद्भुत वैचितत्र्य से भर रखा है, उन मायापति भगवान के लिये कुछ भी असम्भव नहीं है बल्कि इन ईश्वरीय लीलाओं का रहस्य समझ लेना साधारण बात नहीं है। जो भगवान के दिव्य जन्म और कर्म के रहस्य को तत्त्वत: समझ लेता है, वह तो उनके चरणों में सदा के लिये स्थान ही पा जाता है। भगवान ने कहा है- जन्म कर्म च से दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वत:। त्यक्ता देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥[1]मेरे दिव्य जन्म और दिव्य कर्म को जो तत्त्व से जान लेता है, वह शरीर छोड़कर पुन: जन्म नहीं लेता वह तो मुझको ही प्राप्त होता है जिसने भगवान के दिव्य अवतार और दिव्य लीला-कर्मों रहस्य जान लिया, उसने सब कुछ जान लिया। वह तो फिर भगवान की लीला में उनके हाथ के लिये इसके सिवा दूसरा कोई साधन अपेक्षित नहीं है भगवत की यही सच्ची उपासना है। परंतु तत्त्व जानना श्रद्धा पूर्वक भगवद्धक्ति करने से ही सम्भव होता है जिन महात्माओं ने इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण को यथार्थ रुप से जान लिया था, उन्हीं में से श्रीसूत महाराज थे, जो हजारों ऋषियों के सामने यह घोषणा करते हैं। |
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- ↑ गीता4। 9
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