श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इस प्रकार राधारानी के प्रेम-रस-सागर में अनेक नयी-नयी तरंगें उठ-उठ कर उन्हें नित्य नवीन प्रेमानन्द-रसका आस्वादन कराती रहती हैं। पर इन सब में सहज उद्देश्य होता है- एक ही प्रियतम श्रीकृष्ण का सुख-सम्पादन। राधा के जीवन का सब कुछ एक मात्र इसीलिये है। भगवान श्रीकृष्ण और राधा के महत्त्व तथा उपासना के सम्बन्ध में शास्त्रों में और भक्त-संतो की वाणी में बहुत कुछ लिखा गया है। यहाँ ‘पद्यपुराण, पातालखण्ड’ के कुछ शब्द उद्धृत किये जा रहे हैं जो भगवान शंकर और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद के हैं। श्रीमहादेव जी को मनोहर यमुना जी के तट पर सर्व देवेश्वरेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के इस रूप में दर्शन होते हैं- “उनकी किशोर अवस्था है, मनोहर गोपवेष है, प्रिया श्रीराधिका जी के कंधे पर अपनी मनोहर वाम भुजा रखे हैं, असंख्य गोपियों से घिरे हुए हैं, मधुर-मधुर हँस रहे हैं और सबको हँसा रहे हैं। उनके शरीर की कान्ति सजल जलद के सदृश स्निग्ध श्याम-वर्ण है। |
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