श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
फिर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- ‘मैं सदा ही इन गोपियों के प्रेम में विह्वल रहता हूँ।- ये मेरी प्रिया हैं, इनका नाम राधिका है। इनको परम देवता समझो; मैं इनके वशीभूत रहकर सदा ही इनके साथ लीला-विहार करता रहता हूँ।’ इसके बाद, गोपी गण, नन्द-यशोदा, गौ तथा वृन्दावन आदि की महिमा बतलाने के पश्चत भगवान महादेव के द्वारा युगल स्वरूप के साक्षात्कार का उपाय पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘रुद्र! जो एक बार हमारी शरण में आ जाता है, वह दूसरे उपाय छोडकर निरन्तर हमारी ही उपासना करता है। जो एक मात्र मेरी प्रिया (राधा) की अनन्य भाव से सेवा करता है, वह बिना किसी साधन के निश्चय ही मुझ को प्राप्त होता है। अतएव यदि कोई मुझे वश में करना चाहे तो सब प्रकार से प्रयत्न करके मेरी प्रिया के शरणापन्न हो-’ अतएव हम सब को भगवान श्रीकृष्ण की परम प्रियतमा, विशुद्ध प्रेम की घनी भूत मूर्ति श्रीराधारानी के चरणों में विनयपूर्वक प्रणाम करके उनके शरण होना है और उनके प्राकट्य-महोत्सव के शुभ मंगल-दिवस पर उनकी जय-जयकार करते हुए उनसे प्रेम की भीख माँगनी है।-
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ पद्पुराण, पाताल० 51।86
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