|
वे अत्यन्त व्याकुल हो गयीं और बोलीं-
- याद पड़ रहा है आये थे, भोजन करने मोहन श्याम।
- परस रही थी मैं उनको अति रुचिकर भोज्यपदार्थ तमाम।।
- यह मेरा भ्रम था, माधव तो खेल रहे कालिन्दी-कूल।
- आये क्यों न अभी? क्या क्रीड़ा में वे गये सभी कुछ भूल।।
- भूखे होंगे, कैसे उन्हे बुलाऊँ अब मैं यहाँ तुरंत?
- हृदय विदीर्ण हो रहा, कैसे हो इस मेरे दुख का अन्त।।
- बना-बनाया भोजन क्या यह नहीं आयेगा प्रिय के काम?।
- क्या वे इसे धन्य करने को नहीं पधारेंगे सुखधाम?।।
- माधव सुन हँस रहे प्रिया का यह मधु प्रेमविलाप-विलास।
- बोले-राधे! चेत करो, देखो मैं रहा तुम्हारे पास।।
- छोड़ दिया क्यों तुमने वस्तु परसना, होकर व्यर्थ उदास?
- भूखा मैं यदि रह जाऊँगा, होगी तम्हें भयानक त्रास’।।
- यों कह, मृदु हँस, माधव ने पकड़ा राधा का कोमल-हाथ।
- चौंकी, बोली-‘हाय! हो गयी मुझसे बड़ी भूल यह नाथ!’।।
- कैसी मैं अधमा हूँ, जो मैं भ्रम से गयी जिमाना भूल।
- व्यर्थ मान बैठी , प्रिय! तुम हो खेल रहे कालिन्दी-कूल।।
- लगी प्रेम से पुनः परसने विविध स्वाद युक्त वस्तु ललाम।
- भोग लगाने लगे, मधुर लीला पर हँस कर प्रियतम श्याम।।
|
|