श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीवृषभानु के घर पुत्री के रूप में पधारी हैं। इनके चरण कमल का संस्पर्श प्राप्त कर पृथ्वी परम पवित्र हो गयी है। मुने! जिन्हें ब्रह्मा आदि देवता नहीं देख सके, वे ही ये देवी भारतवर्ष में सबके दृष्टिगोचर हो रही है। ये स्त्री-रत्नों में साररूपा है। ये भगवान श्रीकृष्ण के वक्षःस्थल पर इस प्रकार विराजती हैं, जैसे आकाश स्थित नवीन नील मेघ में बिजली चमक रही हो। इन्हें पाने के लिये ब्रह्मा ने साठ हजार वर्षों तक तपस्या की थी। उनकी तपस्या का उद्देश्य यही था कि इनके चरण-कमल के नख के दर्शन सुलभ हो जायँ, जिससे मैं परम पवित्र बन जाऊँ; परंतु स्वप्न में भी वे इन भगवती के दर्शन प्राप्त न कर सके, फिर प्रत्यक्ष की तो बात ही क्या है। उसी तप के प्रभाव से ये देवी वृन्दावन में प्रकट हुई हैं- धराधाम पर इनका पधारना हुआ है, जहाँ ब्रह्माजी को भी इनका दर्शन प्राप्त हो सका। ये ही देवी भगवती राधा के नाम से प्रसिद्ध हैं।’[1] ब्रह्माजी ने श्रीराधा से कहा है-
‘आप राधा श्रीकृष्ण हैं, या स्वयं श्रीहरि ही राधा हैं- इनका निरूपण कौन करे।’ ‘आप इनका अंश हैं या ये आपका अंश हैं- इसका निरूपण कौन करे।’ नारदपञ्चरात्र में भगवान शिव के ये वचन हैं-
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ ब्रह्मवैवर्त, प्रकृतिखण्ड 1। 41-53
- ↑ 2। 3। 51
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