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जरा समझिये-
आकाश या व्योम - शब्द-तन्मात्रक है।
वायु या मरुत - शब्द-स्पर्श-तन्मात्रक है।
अग्नि या तेज - शब्द-स्पर्श-रूप-तन्मात्रक है।
अप् या जल - शब्द-स्पर्श-रूप-रस-तन्मात्रक है।
क्षिति या पृथ्वी - शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गन्ध-तन्मात्रक है।
इसी प्रकार शान्त, दास्य, सख्य, वात्सल्य और माधुर्य को समझना चाहिये।
शान्त-रस - निष्ठामय।
दास्य - निष्ठा और सेवामय।
सख्य - निष्ठा, सेवा और विश्रम्भ - (संकोचराहित्य-) मय।
वात्सल्य - निष्ठा, सेवा, विश्रम्भ और ममतामय।
माधुर्य - निष्ठा, सेवा, विश्रम्भ, ममता और आतमसमर्पणमय।
इनमें सर्वप्रथम शान्त-रस है - शान्त-रस के भक्त में समस्त दैवी सम्पदा के गुणों का समावेश होता है। वह शम-दम-सम्पन्न होता है, दोषों पर विजय प्राप्त कर चुकता है।
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