श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
वैष्णव महानुभावों ने शास्त्र-निर्णय तथा अपने अनुभव के आधार पर पाँच प्रकार के रस बतलाये हैं। भक्त के भाव-भेद से ही ये रस-भेद हैं। यह आवश्यक नहीं कि इनका क्रमशः विकास हो; परंतु यह निश्चय है कि अगले-अगले रस में पिछले-पिछले रस की निष्ठा अवश्य रहती है। जैसे आकाशादि पन्चभूतों के गुण अगले-अगले भूतों में वर्तमान रहते हैं, वैसे ही इस साधन-प्रणाली में भी रसों का रहना माना गया है। जैसे पृथ्वी में पाँचों गुणों का पर्यवसान है, वैसे ही शान्त-दास्यादि रसों का माधुर्य में पर्यवसान है। |
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