भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
कंस का कारागार
राजसभा के युद्ध में मारे गये लोगों के शव उनके स्वजन-सम्बन्धियों को ले जाने का अवसर दे दिया गया था। लोग शव ले जा रहे थे। कंस ने बैठते ही कहा- ‘परिचारिकायें तत्काल वसुदेव के कक्ष में भेजी जावें। देवकी को शीघ्र स्वस्थ होना चाहिये। उनकी सुविधा की आवश्यक सामग्री अभी वहाँ पहुँचा दी जाय और कक्ष स्वच्छ कर दिया जाय।’ असुर मन्त्रियों ने एक दूसरे की ओर देखा। उनको लगा कि उनके नवीन महाराज में बहिन का स्नेह फिर जाग उठा है। कंस ने उनका तात्पर्य समझ लिया। वह बोला– ‘मैं उस दिन भूल कर रहा था जब देवकी को मारने जा रहा था। वह अवसर टल गया– अच्छा हुआ। देवकी मर गयी तो पता नहीं कहाँ जन्म लेगी और तब कहाँ उसका अष्टम पुत्र होगा, बढ़ेगा, कौन जानता है। यह तो विपत्ति को सीमातीत बढ़ा देना है। अभी देवकी अपने संरक्षण में है।’ असुरों के नेत्र चमके। उनमें प्रशंसा का भाव आया। उनके नायक इतने दूरदर्शी हैं, यह आज उनकी समझ में आया। कंस ने कहा– ‘अभी इसी समय देवकी के पास परिचर्याकुशल सेविकायें भेज दो। उस कक्ष में पुरुष सेवक नहीं जायेंगे। कल से सेविकायें वहाँ केवल दिन में जाया करेंगी। रात्रि में वहाँ कोई सेविका कल से नहीं रहेगी।’ कंस ने कुछ अधिक गम्भीर स्वर में कहा– ‘मैं नहीं चाहता कि वसुदेव देवकी दुर्बल, रोगी रहें और उनके दीर्घकाल के अन्तर से सन्तान हों। यह आतंक, जितना शीघ्र हो सके, दूर होना चाहिये। इसलिए आवश्यक है कि देवकी शीघ्र स्वस्थ और सबल हो जाय। वसुदेव को भी पौष्टिक भोजन मिलना चाहिये। हमारे चिकित्सक उनको उपयुक्त रसायन का सेवन करावें। उनको कारागार का कष्ट कम अनुभव हो, ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिये। उनके सुख-सुविधा की सामग्री उनके बिना मांगे वहाँ पहुँचायी जानी चाहिये।’ ‘वसुदेव की रानियाँ कारागार में उनके समीप आती-जाती रहेंगी।’ कंस ने स्पष्ट कर दिया– ‘उनमें कोई रात्रि को भी रहे तो रहने दी जाय; किन्तु जैसे ही देवकी में फिर गर्भ का लक्षण प्रकट हो, दासियों को उनके पास नहीं जाना चाहिये और तब वसुदेव की पत्नियों को भी देवकी के सन्तान हो जाने तक वहाँ नहीं जाने देना चाहिये।’ ‘जो दासियाँ वसुदेव-देवकी के समीप जायें, वे कितनी भी विश्वस्त क्यों न हो, उन पर सतर्क दृष्टि रखी जाय कि वहाँ से आकर वे नगर में किससे मिलती हैं, क्या करती हैं।’ कंस कोई छिद्र अपनी सुरक्षा में भला क्यों रहने देता। ‘वसुदेव की पत्नियों पर तो सतर्क दृष्टि रखनी चाहिये। कोई पुरुष-वसुदेव का भी कोई स्वजन अथवा अपना कोई सेवक उनके कक्ष में कभी नहीं जायगा।’ ‘आपके पिताश्री के लिए……!’ एक मन्त्री ने किंचित व्यंग्यपूर्वक पूछा। ‘उस वृद्ध की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।’ कंस ने कह दिया- ‘वैसे उसके कक्ष को भी स्वच्छ करा दो और उसके लिए आवश्यक सामग्री, जो वह चाहे, भेज दो। उसके यहाँ कभी कोई सेविका नहीं जायगी। उसके कोई मन्त्री, कोई यादव उससे नहीं मिल सकेंगे। उसके पास केवल दिन में अपने सेवक जायँगे। उन सेवकों पर भी सतर्क दृष्टि रखो कि वे नगर में किन-किन से मिलते हैं और क्या करते हैं।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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