भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह चक्र पृ. 75

भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'

Prev.png
कंस का कारागार

राजसभा के युद्ध में मारे गये लोगों के शव उनके स्‍वजन-सम्‍बन्धियों को ले जाने का अवसर दे दिया गया था। लोग शव ले जा रहे थे। कंस ने बैठते ही कहा- ‘परिचारिकायें तत्‍काल वसुदेव के कक्ष में भेजी जावें। देवकी को शीघ्र स्‍वस्‍थ होना चाहिये। उनकी सुविधा की आवश्‍यक सामग्री अभी वहाँ पहुँचा दी जाय और कक्ष स्‍वच्‍छ कर दिया जाय।’ असुर म‍न्‍त्रियों ने एक दूसरे की ओर देखा। उनको लगा कि उनके नवीन महाराज में बहिन का स्‍नेह फिर जाग उठा है। कंस ने उनका तात्‍पर्य समझ लिया। वह बोला– ‘मैं उस दिन भूल कर रहा था जब देवकी को मारने जा रहा था। वह अवसर टल गया– अच्‍छा हुआ। देवकी मर गयी तो पता नहीं कहाँ जन्‍म लेगी और तब कहाँ उसका अष्‍टम पुत्र होगा, बढ़ेगा, कौन जानता है। यह तो विपत्ति को सीमातीत बढ़ा देना है। अभी देवकी अपने संरक्षण में है।’ असुरों के नेत्र चमके। उनमें प्रशंसा का भाव आया। उनके नायक इतने दूरदर्शी हैं, यह आज उनकी समझ में आया।

कंस ने कहा– ‘अभी इसी समय देवकी के पास परिचर्याकुशल सेविकायें भेज दो। उस कक्ष में पुरुष सेवक नहीं जायेंगे। कल से सेविकायें वहाँ केवल दिन में जाया करेंगी। रात्रि में वहाँ कोई सेविका कल से नहीं रहेगी।’ कंस ने कुछ अधिक गम्‍भीर स्‍वर में कहा– ‘मैं नहीं चाहता कि वसुदेव देवकी दुर्बल, रोगी रहें और उनके दीर्घकाल के अन्‍तर से सन्‍तान हों। यह आतंक, जितना शीघ्र हो सके, दूर होना चाहिये। इसलिए आवश्‍यक है कि देवकी शीघ्र स्‍वस्‍थ और सबल हो जाय। वसुदेव को भी पौष्टिक भोजन मिलना चाहिये। हमारे चिकित्‍सक उनको उपयुक्‍त रसायन का सेवन करावें। उनको कारागार का कष्‍ट कम अनुभव हो, ऐसा ही व्‍यवहार किया जाना चाहिये।

उनके सुख-सुविधा की सामग्री उनके बिना मांगे वहाँ पहुँचायी जानी चाहिये।’ ‘वसुदेव की रानियाँ कारागार में उनके समीप आती-जाती रहेंगी।’ कंस ने स्‍पष्‍ट कर दिया– ‘उनमें कोई रात्रि को भी रहे तो रहने दी जाय; किन्‍तु जैसे ही देवकी में फिर गर्भ का लक्षण प्रकट हो, दासियों को उनके पास नहीं जाना चाहिये और तब वसुदेव की पत्‍नियों को भी देवकी के सन्‍तान हो जाने तक वहाँ नहीं जाने देना चाहिये।’ ‘जो दासियाँ वसुदेव-देवकी के समीप जायें, वे कितनी भी विश्वस्‍त क्‍यों न हो, उन पर सतर्क दृष्टि रखी जाय कि वहाँ से आकर वे नगर में किससे मिलती हैं, क्‍या करती हैं।’ कंस कोई छिद्र अपनी सुरक्षा में भला क्‍यों रहने देता।

‘वसुदेव की पत्‍नियों पर तो सतर्क दृष्टि रखनी चाहिये। कोई पुरुष-वसुदेव का भी कोई स्‍वजन अथवा अपना कोई सेवक उनके कक्ष में कभी नहीं जायगा।’ ‘आपके पिताश्री के लिए……!’ एक मन्‍त्री ने किंचित व्‍यंग्यपूर्वक पूछा। ‘उस वृद्ध की चिन्‍ता करने की आवश्‍यकता नहीं है।’ कंस ने कह दिया- ‘वैसे उसके कक्ष को भी स्‍वच्‍छ करा दो और उसके लिए आवश्‍यक सामग्री, जो वह चाहे, भेज दो। उसके यहाँ कभी कोई सेविका नहीं जायगी। उसके कोई मन्‍त्री, कोई यादव उससे नहीं मिल सकेंगे। उसके पास केवल दिन में अपने सेवक जायँगे। उन सेवकों पर भी सतर्क दृष्टि रखो कि वे नगर में किन-किन से मिलते हैं और क्‍या करते हैं।’

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भगवान वासुदेव
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. मंगलाचरण 1
2. अपनी बात 2
3. द्वितीय संस्‍करण के सम्‍बन्‍ध में 5
4. उपक्रम 6
5. सगुण तत्त्व 9
6. साकार तत्त्व 14
7. अवतार तत्त्व 19
8. दशावतार 22
9. भूभार क्‍या ? 26
10. अवतार के लिए अनुरोध 29
11. मथुरापुरी 33
12. वृष्णि वंश 36
13. यादव महराज उग्रसेन 38
14. युवराज कंस 40
15. वसुदेव ‘आनकदुन्‍दुभि’ 46
16. माता देवकी 49
17. विवाह 52
18. आकाशवाणी और... 55
19. कंस का प्रयत्‍न 59
20. देवकी का प्रथम गर्भ 62
21. कंस की कृपा 65
22. देवर्षि आये 68
23. शिशु हत्‍या 71
24. महाराज उग्रसेन भी बन्‍दी बने 72
25. कंस का कारागार 74
26. महाराज कंस 77
27. निर्मम हत्‍यायें 79
28. रोहिणीजी ब्रज गयीं 81
29. गर्भ संकषर्ण 86
30. अष्‍टम गर्भ 87
31. कंस आतंकग्रस्‍त 90
32. भाद्र कृष्‍ण अष्‍टमी 92
33. श्रीकृष्‍णावतार 95
34. वासुदेव गोकुल गये 98
35. योगमाया 102
36. कारागार से त्राण 106
37. कुटिल मंत्रणा 108
38. पूतना गयी 110
39. व्रजपति-मिलन 113
40. अटके प्राण 116
41. श्रीगर्गाचार्य गोकुल गये 119
42. सुभद्रा–जन्‍म 121
43. क्रूरता कटती गयी 124
44. फिर आये देवर्षि 128
45. फिर कारागार 130
46. केशी गया 132
47. अक्रूर ब्रज गये 134
48. अक्रूर लौट आये 138
49. राम-श्‍याम आये 141
50. नगर दर्शन 144
51. धोबी मरा 146
52. दर्जी की कला कृतार्थ हुई 149
53. धन्‍य माली सुदामा 152
54. कुब्‍जा सुन्‍दरी 156
55. धनुर्भंग 159
56. जय जननायक 165
57. कंस का भयोन्‍माद 167
58. शिवरात्रि का सबेरा 169
59. गज–वध 172
60. रंगशाला में 175
61. मल्‍ल-युद्ध 178
62. कंसारि 184
63. यादवेन्‍द्र उग्रसेन 187
64. पितृ-मिलन 190
65. वैर–बीज 193
66. मथुरा सुख बसी 196
67. ब्रजराज विदा हुए 198
68. माता रोहिणी आयीं 202
69. उपनयन 205
70. गुरुकुल पहुँचे 211
71. शिक्षण-प्रशिक्षण 214
72. गुरु सेवा 219
73. प्रत्यावर्तन 224
74. गुरु-दक्षिणा 227
75. कुब्जा की प्रतीक्षा 232
76. सैरन्ध्री सुंदरी 235
77. उद्धव ब्रज गए 237
78. उद्धव लौट आए ब्रज से 241
79. वसुदेव जी की सन्तति 243
80. अक्रूर के भवन में 245
81. जरासन्ध का आक्रमण 248
82. कोल-वध 254
83. युद्ध ! युद्ध ! युद्ध ! 258
84. चक्र–मौशल युद्ध 261
85. शृगाल वासुदेव 267
86. श्री बलराम विवाह 271
87. अपूर्ण स्वयंवर 275
88. द्वारिकापुरी 282
89. कालयवन 287
90. मुचुकुन्द 292
91. श्रीरणछोड़राय 296
92. उपसंहार 302
93. अंतिम पृष्ठ 305

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः