भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
प्रत्यावर्तन
राम और कृष्ण का प्रत्यावर्तन संस्कार होगा। आवहनीय कुंड के समीप आसन से उठते ही महर्षि ने अपने अंतेवासियों को आदेश दे दिया–आज प्रस्तुति के लिए अनध्याय रहेगा। अवन्तिका की राजमाता को सूचना दे आओ। उनके भ्रात पुत्रों के इस संस्कार की। राम–कृष्ण को आश्रम में आए पूरे चौंसठ दिन हुए हैं। आचार्य चरण कहते हैं–केवल एक कला की शिक्षा ही शेष रही है और वह आज पूरी हो जाएगी। श्रुति एवं श्रुत्यंग उपवेदादिका ज्ञान उनके आशीर्वाद ने दे दिया। स्वजन स्वगृह से वियुक्त ब्रहचारियों को शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात एक दिन भी क्यों रोका जाना चाहिए? महर्षि इसे निष्ठुरता मानते हैं। राम और कृष्ण चले जाएंगे। बड़ी उत्पीड़क कल्पना है यह, किंतु वे यहाँ वन में शिक्षण पूरा करके भी तपस्वी बने रहें, कठोर जीवन व्यतीत करें–यह भी हृदय को कहाँ सहृय हैं। गुरु पत्नी, अंतेवासीगण विचित्र स्थिति में हैं। उनमें असह्य वेदना और अद्भुत उल्लास साथ–साथ जागता है। राम कृष्ण दोनों को ही अध्ययन कहाँ करना था। गुरु देव श्रुतित्रयों का उपवेदों का तथा सूत्र ग्रंथों का केवल एक बार मूल पाठ सुना दिया। दोनों भाइ श्रवण मात्र से ही उन्हें धारण कर लेने में दक्ष श्रुतधर हैं और व्याख्यान उनसे उत्तम दूसरा कोई क्या करेगा। ये सर्वविद्यानिधान–इनकी क्या शिक्षा–मर्यादा रखनी थी गुरु मुख से श्रवण की और वह पूर्ण हो गई। राम कृष्ण का समावर्तन संस्कार है! इस समाचार ने अवन्तिका को उल्लास से भर दिया। राज माता राजाधिदेवी स्वयं सम्पूर्ण नगर सज्जा एवं स्वागत सत्कार संचालन करने लगी हैं। उनके भाई वसुदेव जी के ये भुभनवन्द्य पुत्र अब राज सदन आ सकेंगे। गुरु कुल से निकलने पर उनके प्रथम सत्कार का सौभाग्य अवन्तिका को मिलेगा। दोनों भाइयों के लिए वस्त्र, आभरण उष्णीय, कञ्चुक, उपानह, रत्न दंड–पता नहीं, राज माता को क्या क्या जुटाना है और ऐसा जुटाना है जो दोनों भाइयों के उपयुक्त कुछ तो लगे। वे तो स्वयं अपने करों से उद्धवर्तन, तैल, उप लेपन, अंगराग, माल्य तक प्रस्तुत कर लेना चाहती हैं। उनको किसी पर इस समय भरोसा नहीं रहा। उनकी पुत्री मित्रविंदा के मन में भी सेवा की कुछ साध है, वह भी भागी भागी फिर रही है-इस और ध्यान देने का भी अवकाश नहीं उन्हें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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