भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
मुचुकुन्द
श्रीकृष्ण चंद्र गुफा में अब भीतर से कुछ आगे बढ़ आए। वह पुरुष बैठे रहने को विवश था। इस गुफा में उसके उठ खड़े होने जितना स्थान नहीं था। उसने हाथ जोड़ कर मस्तक झुकाया। आप कौन है? इस वन में स्थित पर्वत की गुफा में आप कैसे पधारे? आपके श्री चरण कमलदल के समान कोमल हैं। इस कण्टक–कंकड़ियों से भरी भूमि में नंगे पैर आप घूम रहे हैं? उस पुरुष ने मस्तक झुका रखा था। उसकी दृष्टि अरुण मृदुल चरणों पर लगी थी। वह चरणों को बड़े स्नेह से देख रहा था। आप तेजस्वियों के परमतेज भगवान अग्नि हैं? सूर्यनारायण हैं? चंद्रदेव हैं? देवराज इंद्र हैं अथवा कोई लोकपाल हैं? किंतु इनमें से मैं सबसे परिचित हूँ। सबको पहचानता हूँ। वह पुरुष कह रहा था–अत: मुझे लगता है कि सृष्टि–स्थित–पालनकर्ता त्रिदेवों में से सर्वश्रेष्ठ श्री हरि ही आप मुझ पर कृपा करने पधारे हैं। मेघश्याम श्रीअंग, पीताम्बर परिधान, वक्षस्थल पर श्रीवत्स चिह्न काण्ठ में कौस्तुभ चतुर्भुज, वनमाली, तेजोमय मकराकृत कुण्डल, यह श्रीमूर्ति भी क्यों पहिचानने की अपेक्षा रखती है, किंतु इस समय श्रीकृष्ण चंद्र ने जो तेज प्रकट किया था, उससे उस पुरुष के नेत्र इन परम पुरुष को देखने में असमर्थ हो रहे थे। केवल एक झलक मिली और नेत्र झुका लेने पड़े। उसने अपनी असमर्थता प्रकट की–महाबाहो! आप इतने तेजस्वी है कि मैं आपकी ओर अधिक देख नहीं सकता हूँ। मैं हतोजस हो गया हूँ आपके तेज के सम्मुख। आप समस्त देहधारियों के लिए सम्मान्य हैं। अत: यदि आपको रुचे तो अपना परिचय दें। अपना कुल–गोत्र, यहाँ पधारने का प्रयोजन बतला दें। मुझे क्षमा करें। पहले मुझे अपना परिचय देना चाहिए। उस पुरुष ने फिर कहा–वैवस्वत–नंदन महाराज इक्ष्वाकु के कुल में चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता (युवनाश्व) का पुत्र हूँ मैं। मेरे नाम मुचुकुन्द है। ब्राह्मणों के चरणों का मैं सदा से सेवक रहा हूँ। देवता असुरों से पराजित हो गए तो उन्होंने मुझसे सहायता की याचना की। मैं स्वर्ग गया और सुरों की ओर से असुरों से युद्ध में लग गया। कितना समय व्यतीत हो गया इसका मुझे पता नहीं लगा। महाराज। हम सुरों के संरक्षण एवं पालन के इस कठोर श्रम से अब विश्राम लें। देवताओं ने कहा, क्योंकि उन्हें भगवान पशुपति के पुत्र कुमार कार्तिकेय का संरक्षण प्राप्त हो गया था। स्कन्द ने उनका सेनापतित्व स्वीकार लिया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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