भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
मथुरापुरी
‘मथुरा भगवान् यत्र नित्यं संनिहितो हरि:’[1]यह कहा जाता है! भगवान वासुदेव का प्राकट्य हुआ मथुरा में और इससे पुरी परम पावन हो गयी; किन्तु यहाँ श्रीहरि का नित्य सान्निध्य है और सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में मथुरा है।[2] यह स्थान में मोक्षदातृत्व कैसा है? पुराणों में ग्यारह प्रकार से मोक्ष माना है।
मोक्ष केवल ज्ञान से ही होता है, हय श्रुति का उद्घोष है।[3] लेकिन जीवन को दूसरा सर्मथ ज्ञान नहीं दे सकता, ऐसा कोई नियम नहीं है। अत: इन ग्यारह प्रकार से होने वाले मोक्षों में ज्ञान से तत्काल मोक्ष होता है। शेष से जन्मान्तर में ज्ञान प्राप्त करके अथवा लोकान्तर में ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष होता है। भगवान तथा सन्त ज्ञान दाता कर ही सकते हैं। भगवान ब्रह्मा ब्रह्मलोक में, इन्द्र स्वर्ग में और धर्मराज संयमिनी-पुरी यमलोक में ज्ञान दे सकते हैं; यदि कोई जी इन ग्यारह में से किसी एक के द्वारा मोक्ष का अधिकारी होकर उनके लोक में पहुँचता है। इसी से ये तीनों लोकाधिपति ज्ञानी हैं। मथुरा, अयोध्या, द्वारावती और विष्णु कांंची वैष्णवपुरी हैं। यहाँ श्रीहरि का नित्य सान्निध्य रहता है। काशी, मायापुरी-हरिद्वार, अवन्तिका और शिवकांंची में नित्य सान्निध्य हैं भगवान शिव। अत: इनमें मृत्यु से इन पुरियों के अधीश्वर का अनुग्रह प्राप्त होता है। फलत: वह जीव जन्मान्तर में साधन-भजन में लग जाता है और अन्त में भगवद् धाम प्राप्त कर लेता है।[4] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत 10.1.28
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काशी कांंची च मायाख्या त्वयोध्या द्वार्वत्यपि। मथुरा वंतिका चैता: सप्त्पुर्योड्त्र मोक्षदा॥
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ऋते ज्ञानान्मुक्ति:। (शांकर सम्प्रदाय मे यह बहुत प्रामाणिक श्रुति मानी जाती है; किंतु मंत्र-संहिताओंं में तथा प्राप्त आरण्य को एवं उपनिषदों में कही मिलती नहीं।
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कवनेहुं जन्म अवध बस जोई।राम परायन सो परि होई॥
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