भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
अवतार के लिए अनुरोध
परमात्मा के विभिन्न साकार विग्रहों से अवतार की प्रार्थना का प्रयोजन? अनेक बार उद्धत असुर को कोई विशेष वर प्राप्त होता है। जैसे उसे स्त्री के अतिरिक्त अन्य सबसे अबध्य होने का वरदान प्राप्त हो तो महाशक्ति के अवतरण की अनिवार्य आवश्यकता है। इसी प्रकार के अनेक वरदान कुछ समस्याएँ उत्पन्न करते हैं। कभी आसुरता का प्राबल्य विघ्नों की गणना में आता है तो गणाधीश को पुकारना पड़ता है। कभी तमस का अन्धकार प्रबल कर देते हैं तो प्रकाश के अधिपति भुवन भास्कर से पुकार की जाती है। भगवान ब्रह्मा को यह भी देखना होता है कि असुरों ने किन भगवद् स्वरूपों से अनुग्रह प्राप्त किया है। उन रूपों से भिन्न रूप ही उनका प्रशमन कर सकते हैं। केवल आसुर तत्वों के प्रशमन का कार्य हो तो अवतार ब्रह्माण्डाधीश का ही होता है। ब्रह्माण्ड नायक परमेश्वर प्रशमन के अनुरूप श्रीविग्रह में अवतार लेते हैं और सृष्टि कर्ता की समस्या सुलझा देते हैं। जिन परमधन्य प्राणों में निखिल ब्रह्माण्ड नायक को अपना बनाकर परितृप्ति देने की प्यास जगी है, वे भी तो धरा को अकेले अथवा सामूहिक रूप में अनेक बार कृतार्थ करते हैं। ये महाभाग ब्रह्माण्ड नायक के आगमन से कहाँ सन्तुष्ट होते हैं? इन्हें तो निखिल ब्रह्माण्डेश्वर अपना स्वजन दीखता है और ये उससे कुछ लेना नहीं चाहते, उसे भी सुख-परितृप्ति देने को आतुर होते हैं। जब ऐसा अवसर आता है, परात्पर परम प्रभु को धरा पर आना पड़ता है। भगवान ब्रह्मा तो सुरों के साथ क्षीरोदधिशायी से ही प्रार्थना करते हैं। लेकिन वे प्रेमोज्वल प्राण जो परम प्रभु को पुकारते हैं, उनकी पुकार तो उसी तक पहुँचती है। ब्रह्मा जी की प्रार्थना तब क्षीराब्धिशायी सुनकर उन्हें आश्वस्त कर देते हैं; क्योंकि परम प्रभु धरा पर आने वाले हैं, इससे वे सर्वज्ञ अवगत रहते हैं। परात्पर परम तत्व के अवतीर्ण होने पर उसके साकार विग्रह के अनुरूप होकर ब्रह्माण्डाधीश उससे एकत्व ग्रहण करके अवतार लेते हैं। इस प्रकार उस समय भी ब्रह्माण्डाधीश अवतार का माध्यम बनते हैं। अब इसी द्वापरान्त में भगवान वासुदेव इस धरा पर पधारे और उन्होंने सबको कृतार्थ किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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