भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
वसुदेव जी की सन्तति
सप्तम गर्भ में श्रीसंकर्षण आए। योगमाया ने उन्हें माता रोहिणी के गर्भ में पहुँचा दिया। वही बल या बलराम नाम से रोहिणी जी के प्रथम पुत्र हुए। वसुदेव जी के जीवित रहने वाले पुत्रों में ज्येष्ठ ये राम ही हैं। अष्टम पुत्र माता देवकी के श्रीकृष्ण स्वयं परिपूर्णतम परम पुरुष भगवान वासुदेव और इनसे एक वर्ष छोटी सुभद्रा। श्री संकर्षण, श्रीकृष्ण, सुभद्रा–ये तीनों इसी क्रम से वसुदेव जी के पुत्रों में–संतानो में बड़े हैं। सुभद्रा के छोटे भाई विमाताओं से बहुत हुए, किंतु बड़े भाई उनके दो ही हैं–श्री बलराम और श्रीकृष्ण। देवकी जी के और कोई संतान नहीं हुई। वसुदेव जी के अठारह पत्नियाँ थीं। उनमें सबसे छोटी थीं देवकी जी। वसुदेव जी का विवाह उनके पिता शूरसेन जी–ठीक कहना हो तो उनकी माता मारिषा करती चली गईं। इसलिए करती गईं, क्योंकि उनके पौत्र नहीं हो रहा था। वसुदेव जी की किसी पत्नी को दीर्घकाल तक कोई पुत्र नहीं हुआ। वंश परम्परा की ज्येष्ठ पुत्र के वंश परंपरा की रक्षा माता को आवश्यक लगती थी। वसुदेव जी माता–पिता के भक्त, विनम्र सेवक। उनके लिए प्रतिवाद का प्रश्न ही नहीं था। उग्रसेन जी के भाई देवक जी ने अपनी ज्येष्ठा पुत्री दी वसुदेव जी को। उनके जब संतान नहीं हुई, दूसरे विवाह की बात उठी–अपनी दूसरी पुत्री विवाह दी। इस क्रम से उनकी पुत्रियाँ वसुदेव जी को ही विवाही जाती रहीं। जब देवक जी की कन्याओं से संतान नहीं होती दीखी, देवी मारिषा अन्य कुलों से भी पुत्रवधुएं ले आईं। परिणाम तब भी कुछ नहीं हुआ। देवक जी की सबसे छोटी कन्या देवकी जी। उनके विवाह की कथा प्रारम्भ में दी जा चुकी है। वे आईं और वसुदेव जी के संतान होना प्रारम्भ हो गया– किंतु उनके विवाह के साथ ही एक अभिशाप लग गया। कंस उनकी संतानों को मारता ही चला गया। उसने दम्पति को कारागार में रुद्ध कर दिया। वसुदेव जी की दूसरी पत्नियाँ मथुरा से इधर–उधर शरण लेने को विवश हुईं। देवकी जी के अष्टम पुत्र हो जाने के पश्चात् योगमांया की वाणी सुनकर कंस आतंकित हुआ। उसने देवकी-वसुदेव को कारागार से मुक्त किया। सुविधा देख कर वसुदेव जी की अन्य पत्नियाँ मथुरा आईं, किंतु रोहिणी जी व्रज में ही रहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत–10-1-56
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