भागवत सुधा -करपात्री महाराज क्रमांक पाठ का नाम पृष्ठ संख्या प्रथम-पुष्प 1. निगमकल्परोर्गलितं फलम् 37 2. पुरुषार्थचतुष्टयप्रदायक निगमकल्पतरु 38 3. रसमालयम् 38 4. आत्माराम का भी भगवद्गुणगणार्णव में अवगाहन 38 5. देव दुर्लभ श्रीमद्भागवत: 39 6. युगधर्मों का निरूपण 42 7. विद्या-अविद्या का समुच्चय 44 8. भगवन्नाम-संकीर्तन 48 9. माहात्म्य 51 10. वस्तु-तत्व के साक्षात्कार के लिए श्रवण, मनन और निदिध्यासन अपेक्षित 54 11. ‘जन्माद्यस्य यतोऽन्वयात्’ की भूमिका 54 12. भगवत्तत्व का अनुसंधान- छान्दोग्य शैली में 55 13. भगवतत्व का अनुसंधान -तैत्तिरीय शैली में 56 14. पैंगलोपनिषत् पुराण और महाभारत की शैली में 56 15. परब्रह्म के निःश्वासभूत वेदों की अपौरुषैयता 57 16. वेदों के प्रतिपाद्य सगुण या निर्गुण 59 17. ईश्वर-सिद्धि 64 18. नास्तिकों के भी उद्धार का उपक्रम 64 19. सर्वात्मभाव 68 20. भगवान् जगत के अभिन्ननिमित्तोपादानकारण 70 द्वितीय-पुष्प 1. ‘जन्माद्यस्य यतः’ 71 2. 'अन्वयत्', 'इतरत:', 'च' 72 3. 'अभिज्ञः' 74 4. ‘स्वराट्’ 74 5. ‘तेने ब्रह्महृदा य आदि कवये मुह्यन्ति यत् सूरयः’ 75 6. ‘तेजोवारिमृदां यथा विनिमय: 76 7. ऋषि-सूत-संवाद 78 8. श्रीशुक-वन्दना 82 9. शुकमनमोहक ‘बर्हापीडं’ श्लोक 85 10. 'बर्हापीडं' 87 11. ‘नटवर- वपुः’ 88 12. ‘कर्णयोः कर्णिकारं’ 90 13. ‘विभ्रद्वासः कनककपिशं’ 91 14. ‘रन्ध्रान्वेणोरधरसुधया पूरयन्’ 92 15. ‘वृन्दारण्यं स्वपदरमणं’ 94 16. अकारणकरुण करुणावरुणालय-‘भगवान्’ 95 तृतीय-पुष्प 1. प्रतिपद्य और प्रतिपादक की परब्रह्मरूपता 99 2. परम धर्म 111 3. मोक्ष पर्यवसायी धर्म, अर्थ और काम 118 4. ‘तत्त्व’ की तात्त्विक परिभाषा 123 चतुर्थ-पुष्प 1. भगवान व्यास को देवर्षि नारद की प्रेरणा 127 2. गुणगण भगवान् के उपकारक नहीं 139 3. भगवदाराधन की विधि 143 4. ‘तथा परमहंसानां’ के साथ ‘परित्राणाय साधूनां’ की संगति 154 पंचम-पुष्प 1. शुक-समागम 159 2. अप्रमत्त के लिये अति सुगम भगवत्प्राप्ति 173 3. नाम-धाम-प्राणायाम और ध्यान से भगवत्प्राप्ति 175 4. ‘तेषां के योगवित्तमाः’ का समाधान 182 5. ‘न किश्चिदपि चिन्तयेत्’ का तात्त्विक अभिप्राय 188 षष्ठ-पुष्प 1. ब्रह्म-नारद संवाद 190 2. माया संतरण का अमोघ उपाय 191 3. प्रह्लाद चरित 195 4. शरणागति 205 5. शरण्य की शरणागति 208 6. शरण्य का स्वरूप 208 7. शरणागति एक बार या बार-बार? 208 8. श्री जी 209 सप्तम-पुष्प 1. राजा बलि के पूर्व जन्म का वृतान्त 216 2. भगवान वामन को आविर्भाव 223 3. राजा बलि की सत्यनिष्ठा 228 4. धर्मनिरपेक्ष या धर्मसापेक्ष? 228 5. धन बड़ा या धनवान ? 230 6. ‘धन नहीं धनवान् बड़ा’ 231 अष्टम-पुष्प 1. वेदान्तवेद्य पूर्णतम पुरुषोत्तम ‘श्रीराम’ 233 2. ‘आदि कर्ता स्वयं प्रभु’ श्रीराम 234 3. लताओं तक को प्रेम प्रदान करने वाले ‘श्रीराम’ 235 4. प्रभुओं के भी प्रभु ‘श्रीराम’ 237 5. धर्म रक्षक ‘श्रीराम’ 239 6. लीला पुरुषोत्तम ‘श्रीकृष्ण’ 239 7. श्रीवृन्दावन, गोपांगनाएँ; श्रीकृष्ण और राधा का तात्विक स्वरूप 240 8. श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्दकन्द का अद्भुत प्राकट्य 242 9. सुषमासारसर्वस्त्र ‘श्रोहरि’ 242/2 10. अनाघ्रात अनपहत-अनुत्पन्न-अनुपहत और अदृष्टाद्भुत पंकज ‘श्रीकृष्ण’ 242/2 11. सत्यज्ञानानन्तान्दमात्रैकरसमूर्ति ‘श्रीकृष्ण’ 242/2 12. भगवान् के जन्म और कर्म दिव्य हैं, वे स्वयं अप्राकृत हैं 243 13. श्री वृन्दावनधाम 248 14. मृद्भक्षण लीला 249 15. दामोदरलीला 251 16. निराकार से साकार 251 17. भावुक के दु्रत चित्त पर भगवान् की अभिव्यक्ति ‘भक्ति’ 253 18. श्रीकृष्णचन्द्र और श्रीराधाचन्द्र 254 19. आसन और आशयरूप बाह्यप्रपच्च और पंचकोश के तादात्म्य का त्यागकर श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्द कन्द के स्वागत में तन्मय द्वारकास्थ पट्टमहिषीगण 257 20. कथा श्रवण से वैराग्य एवं विज्ञानोपलब्धि 258 21. भगवद्गुणानुवाद से भगवद्भक्ति 258 22. अंतिम पृष्ठ 258