श्रीनारायणीयम्
अष्टादशदशकम्
तब मुनियों का समुदाय उसे हितकारी परामर्श देने के लिए उसके पास आया, परंतु वेन ने उत्तर दिया कि ‘मेरे अतिरिक्त दूसरा कोई लोकेश्वर है ही नहीं’ जब वह यों आपकी निन्दा करने लगा, तब उन मुनीश्वरों ने वेन के शापाग्नि में पतिंगे की दशा को पहुँचा दिया।।3।।
वेन की माता सुनीथा दीर्घकाल तक उसके शरीर की रक्षा करती रही। तब वेन के नाश से फैली हुई अराजकता के कारण खलजनों से भयभीत हुए मुनीश्वरों ने वेन के ऊरदण्ड का मन्थन किया, जिससे निषाद की उत्पत्ति हुई और उसका पाप निकल गया। पुनः उसकी भुजा का मन्थन करने पर स्वयं आप प्रकट हुए।।4।। |
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