श्रीनारायणीयम्
षोडशदशकम्
कष्ट की बात है कि ब्रह्मा के अत्यंत लाड़-प्यार करने के कारण प्रजापति दक्ष रजोगुणजनित राग से अंधे हो गये थे। इसी कारण वे आपके प्रति भी अधिक आदर नहीं रख रहे थे, जिससे उनकी शांति नष्ट हो गयी थी। अशांत होने के कारण ही उन्होंने आपके स्वरूपभूत शंकर से विरोध किया और शत्रुता सूचित करने वाले उस यज्ञ में अपनी कन्या सती की भी अवमानना की।।9।।
अपनी प्रिया के अपमान से क्रुद्ध हुए शंकर द्वारा जिनका यज्ञ नष्ट-भ्रष्ट किया तथा सिर काट लिया गया था, उन दक्ष को देवों द्वारा प्रसन्न किये गये शिव जी से ही पुनः जीवन की प्राप्ति हुई। तदनन्तर आपने उनके उस श्रेष्ठ यज्ञ को पूर्ण कर दिया और वे पुनः शान्ति को प्राप्त हुए। प्रशान्तिकर! मरुत्पुरेश! ऐसे प्रभावशाली आप मेरी रक्षा कीजिए।।10।। ।।इति नानारायणावतार वर्णनं षोडशदशकं समाप्तम्।। |
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