श्रीनारायणीयम्
एकोनशततमदशकम्
अनन्त! आप जो त्रैलोक्यमय रूप धारण करते हुए भी उससे बाहर पुनः शुद्ध ज्ञानस्वरूप से वर्तमान हैं, यह आपकी महिमा है। दूसरा आपके समान कौन है? आपका ही एक अंशमात्र अखिल भुवरूप से दृष्टिगोचर हो रहा है। आपका जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश- इन तीन अंशों द्वारा व्यवहार करने योग्य अतिशय परमानन्द से परिपूर्ण स्वरूप है, वह इस भुवन से भी ऊपर प्रकाशित हो रहा है। ऐसे आपको नमस्कार है।।9।।
श्रीकृष्ण! आपका स्वरूप अव्यक्त, अतिशय दुर्बोध एवं शुद्ध सत्त्वात्मक है तथा वही व्यक्त, प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर और ब्रह्मानन्दरूपी सागर की तरंग के समान सुख-सेव्य भी है; अतः मैं आपकी उस सर्वोत्कृष्ट अभीष्ट मूर्ति का, जो अपने भक्तवात्सल्यादि गुणों द्वारा मन को बरबस अपनी ओर आकृष्ट करने वाली है, शरण ग्रहण करता हूँ। पवनपुरपते! रोगों से मेरी रक्षा कीजिए।।10।।
|
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज