श्रीनारायणीयम्
षट्त्रिंशत्तमदशकम्
फिर तो सहस्रार्जुन अपने दस हजार पुत्रों, वीर सेनापतियों से संचालित सत्रह अक्षौहिणी सेनाओं तथा अनेक मित्र समूहों के साथ युद्ध स्थल में आ डटा। परंतु जब तत्काल ही आपके फरसे तथा बाणों के आघात से उसका सारा सैन्यसमूह नष्ट हो गया और मरने से बचे हुए लड़के भयभीत होकर भाग खड़े हुए, तब स्वयं है हयवंशी सहस्रार्जुन ने आप पर आक्रमण किया।।7।।
कभी एक ओर से क्रीड़ावश नर्मदा के जल को रोककर दूसरी ओर उसके बाढ़ मे सेनासहित बहते हुए रावण के गर्व का विनाश करने वाले अपने शोभाशाली हजारों हाथों से उस समय वह अनेकों प्रकार के शस्त्रास्त्रों की वर्षा करने लगा। तब आपने उसे रोक दिया। पुनः उसने आप पर वैष्णव चक्र से वार किया। परंतु जब वह चक्र विफल हो गया, तब सहस्रार्जुन आपको श्रीहरि जानकर आनन्दमग्न हो ध्यान करने लगा, जिससे उसके सारे दोष नष्ट हो गये। तत्पश्चात् आपने उसकी सारी भुजाएँ काटकर उसे मौत के घाट उतार दिया। तब वह आपके परम-पद वैकुण्ठ को चला गया।।8।। |
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