कृष्णांक
व्रज परिचय
उसके आगे बसई गांव है, पास ही वत्सवन है, जहाँ वत्सविहारी ठाकुरजी का मन्दिर है, ग्वालमण्डली का स्थान है, ग्वालकुण्ड है, हरिबोल तीर्थ है, जहाँ ब्रह्माजी ने बछडे़ चुराये थे। आगे रामभद्र-ताल है, जहाँ भगवान ने श्रीरामचन्द्र का रूप धारण किया था। फिर नरी- सेमरी गांव हैं, जो राधिकाजी की दो सखियों के नाम से बसे हैं। सेमरी श्यामला-सखी के नाम का अपभ्रंश है। यहाँ बलदेवजी का मन्दिर है। नरी में विशाखाकुण्ड, सूरजकुण्ड और बलदेवकुण्ड हैं। इसके आगे गरुड़गोविन्द है। जब भगवान ने गोवर्धन पर्वत धारण किया था, तब गरुड़ जी भी सेवार्थ आये थे। इससे आगे दिल्ली की सड़क पर चौमुहा गांव है। चौमुहा चतुर्मुख का अपभ्रंश है। बछडे चुराने के बाद ब्रह्माजी यहाँ आये थे और फिर भगवान के विहार देखकर आश्चर्य चकित होकर भगवान को देखने लगे थे और उनकी स्तुति की थी। फिर आगे छटीकरा गांव है, जहाँ सखियों के छ: कुंजभवन हैं। यहाँ राधिकाजी का गुप्त भवन है। पास ही अक्रूरघाट या अक्रूर गांव है, जहाँ भगवान ने यमुनाजी में अक्रूर को अपना रूप दर्शन कराया था। फिर भतरौड है, जहाँ यज्ञकर्ता ब्राह्मणों की स्त्रियों ने भगवान को भोजन कराया था। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है। इसके आगे वृन्दावन है। यहाँ कालीदह है, जहाँ भगवान ने कालीय मर्दन किया था। यहाँ कालीयमर्दन ठाकुरजी के दर्शन होते हैं। इसके पास युगल घाट है, जहाँ युगल किशोर जी का मन्दिर है। फिर मदनमोहन जी का मन्दिर है। यह मन्दिर वृन्दावन में सबसे प्राचीन है। बंगाली श्रीसनातन गोस्वामी को श्रीमदनमोहन जी की मूर्ति प्राप्त हुई थी और फिर एक रामदास नामक पंजाबी सेठ ने इस मन्दिर को बनवा दिया था। मुसलमानी अत्याचारों के समय मदनमोहन जी करौली पधरा दिये गये। पीछे बंगाली बाबू नन्दकुमार ने मदनमोहन जी का दूसरा मन्दिर बनवाया, जिसमें दूसरी मूर्ति की स्थापना की। इसके पास श्रीहरिदास जी के पूज्यदेव श्रीबांकेविहारी का मन्दिर है। मूर्ति बड़ी मनोहर है। यहाँ की सभी बातें विलक्षण हैं। प्रात:काल दस बजे के पूर्व तो यह उठते ही नहीं, उसके बाद जब दर्शन होते भी हैं तो क्षण-क्षण पर परदा पड़ता जाता है। वर्ष में एक ही दिन शरद्पूर्णिमा को मुकुट तथा वंशी धारण करते हैं और एक ही दिन श्रावण शुक्ला 3 को झूलते हैं। मन्दिर में घण्टा-घडियाल कुछ भी नहीं बजता। इनके अर्चक गुसाईं सारस्वत और निम्बार्क सम्प्रदायी हैं, जो स्वामी हरिदास के भाई के वंश के हैं। स्वामी हरिदास पहुँचे हुए महात्मा हो गये हैं, जिनकी कुटी पर तानसेन का चेला बनकर अकबर बादशाह आया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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