श्रीकृष्णांक
भगवद्विग्रह
जिज्ञासु– श्रीभगवान के देहतत्त्व के संबंध में मुझे कुछ पूछना है। आप आज्ञा दें तो पूछूँ। व– वत्स, भगवान के देह है और धाम भी है, यह वर्णन शास्त्रों में मिलता है। साथ ही ‘भगवान निराकार विशुद्ध चैतन्यमात्र हैं, उनमें किसी प्रकार के आकार का आरोप नहीं हो सकता, उनके नाम-धाम प्रभृति सभी कल्पित हैं’– यह भी शास्त्रीय सिद्धान्त है। ईश्वर साकार हैं या निराकार, इस बात को लेकर विवाद करने की आवश्यकता नहीं। जो अन्तर्दर्शी हैं, वे जानते हैं कि ईश्वर को साकार भी कहा जा सकता है और निराकार भी– पर वस्तुत: वे साकार और निराकार, इन दोनों प्रकार की कल्पनाओं से ही अतीत हैं। जि– गीता में ‘जन्म कर्म च में दिव्यम्, कहकर श्रीकृण ने अपने जन्म और कर्म दोनों को ‘दिव्य’ बतलाया है। अवश्य ही यह लीला-तत्त्व का विषय है। इससे मालूम होता है कि भगवान के अवतार रूप, जन्म अथवा कर्म दोनों ही असाधारण-अप्राकृत हैं। जन्म शब्द से यहाँ देहग्रहण समझना होगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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