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(लेखक – निरीक्षक)
भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और भगवान श्रीकृष्ण लीलापुरुषोत्तम। दोनों एक हैं। एक ही सच्चिदानन्द परमात्मा भिन्न-भिन्न लीलाओं के लिये दो युगों में दो रूपों में अवतीर्ण हैं। इनमें छोटे-बड़े की कल्पना करना अपराध है। श्रीरामरूप में आपकी प्रत्येक लीला सबके अनुकरण करने योग्य मर्यादारूप में होती है, रामरूप की लीलाओं का रहस्य अत्यन्त निगूढ होने पर भी बाह्यरूप से सबकी समझ में आ सकता है और बिना किसी बाधा के अपने-अपने अधिकारानुसार सभी उसका अनुकरण कर सकते हैं, वह सीधा राजमार्ग है परन्तु भगवान की श्रीकृष्णरूप में की गयी लीलाएं बाहर-भीतर दोनों ही प्रकार से निगूढ और रहस्यमय हैं। इनका समझना अत्यन्त ही कठिन है और बिना समझे अनुकरण करना तो हलाहल विष पीना अथवा जान-बूझकर धधकती हुई आग में कूद पड़ना है। यह बड़ा ही कण्टकाकीर्ण और ज्वालामय मार्ग है। अतएव सर्वसाधारण के लिये सर्वथा समझने, मानने और पालन करने योग्य महान उपदेश भगवान श्रीकृष्ण की भगवद्गीता और सर्वतोभाव से अनुकरण करने योग्य भगवान श्रीराम की मर्यादायुक्त लीलाएं हैं।
जिन लोगों ने बिना समझे-बूझे भगवान श्रीकृष्ण की लीला का अनुकरण किया वे स्वयं डूबे और दूसरे के अनेक निर्दोष नर-नारियों को डुबोने का करण बने।
अग्नि पी जाने, पहाड़ अंगुलि पर उठा लेने, कालियानाग को नाथने आदि क्रियाओं का अनुकरण तो कोई क्यों करने लगा और करना भी शक्ति से बाहर की बात है, अनुकरण करने वाले तो चीर-हरण, रासलीला और श्रीराधाकृष्ण की प्रेमलीलाओं का अनुकरण करते हैं। इन लीलाओं के महान उच्च आध्यात्मिक भाव को समझने में सर्वथा असमर्थ होकर अपनी वासनामयी वृत्ति को चरितार्थ करने के लिये इनके अनुकरण के नाम पर वास्तव में पाप किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवत प्रेम में वैराग्य की कोई आवश्यकता नहीं, त्याग की कोई जरूरत नहीं। श्रीप्रियाप्रीतम जी के प्रेम में तो केवल श्रृंगार और भोग का ही प्रयोजन है बल्कि यहाँ तक भी कह दिया जाता है कि जुगल सरकार के चरणों के सेवक बन जाओ फिर चोरी-जोरी, झूँठ-कपट, प्रसाद आलस्य जो कुछ भी करते रहो, कोई आपत्ति नहीं है। मेरी समझ से ये सारी बातें अपनी कमज़ोरियों को छिपाने, भगवद्भक्ति के नाम पर विषयों को प्राप्त करने, कपट-प्रेमी बनकर पाप कमाने और भोले नर नारियों को ठगकर अपनी बुरी वासनाओं को तृप्त करने के लिये कही जाती हैं।
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