श्रीकृष्णांक
आदर्श पुरुष श्रीकृष्ण
जिन लोगों को कभी महाभारत, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण अथवा गर्गसंहिता में से किसी भी एक ग्रन्थ को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ होगा वे हमारे इस मत से सहमत हुए बिना नहीं रह सकते कि भगवान श्रीकृष्ण लोकोत्तर गुणों की खान थे। वे ‘स वै बलं बलिनां चापरेषाम्’ के जीते-जागते एक उज्ज्वल उदाहरण थे। वे ज्ञान, विज्ञान एवं यावत नीतियों के आधार थे। वे कोरे धर्मोपदेशक ही न थे, किन्तु अपने उपदेशानुसार स्वयं चलने वाले भी थे। वे दुष्टों के शत्रु और शिष्टों के अनन्य मित्र थे। वे एक आदर्श पुरुष थे, अतः उनके उपदेश इतर जनों के लिये सर्वथा उपयोगी थे, अब भी हैं एवं यावत चन्द्र-दिवाकर रहेंगे। आदर्श पुरुष होने के कारण श्री कृष्ण के लिये धर्म सिवा अन्य कोई भी अपना न था। जिन श्रीकृष्ण ने अपने अधर्मी एवं अन्यायी मामा कंसों को तथा उसके ससुर जरासन्ध को क्षमा न किया और उन्हें उनके कर्मों के अनुरूप प्राण-दण्ड दे दिया, वे श्री कृष्ण भला उत्पाती एवं अधर्मी अपने कुलोभ्दव यादवों पर क्षमा क्यों करने लगे ? अत्याचारियों और अधर्मियों का नाश करने के अतिरिक्त श्री कृष्ण के जीवन का लक्ष्य इतर जनों के लिये उच्च कोटिका एक आदर्श उपस्थित करना भी था। अतः धराधाम पर रहने के समय श्री कृष्ण ने अपना आदर्श बनाया था। हम जब उनके जीवन भर की समस्त घटनाओं पर आलोचनामयी दृष्टि डालते हैं तब हमें श्री कृष्ण एक महाबली एवं आदर्श नर-रत्न देख पड़ते हैं। उन्होंने बड़े-बड़े नर हत्यारे एवं दुष्ट पशु-पक्षियांे का नाश कर सुख-शान्तिमय जीवन व्यतीत करने वालों जनों का दुःख दुर किया, अधर्मी और अत्याचारी कंसो को तथा उसके नामी दुर्दान्त पहलवानों को एवं महा-उद्दण्ड जरासन्ध को सदा के लिये इस लोक से विदा कर दिया। श्री कृष्ण लड़कपन ही में अनेक अमानुषिक कार्यकर, जनसाधाण के श्रद्धा एवं भक्ति भाजन बन गये थे। पीछे से वे सुदूरवर्ती और समुद्र जल से घिरे हुए द्वारका नामक टापु में रहकर भी, भारत वर्ष के समस्त नरपतियों के ऊपर अपनी प्रभुता जमाये हुए थे। भारत के तत्कालीन सभी बड़े-बड़े नृपतिगण एवं राजनीति में कुशल विज्ञजन उनके आगे सहज ही सिर झुकाते थे। संसार-प्रसिद्ध ऋषि-मुनि, नामी ज्ञानी जन और बड़े-बड़े तपोधन उनको लोकोत्तर गुणों का आकर एवं अलौकिक प्रतिभा की सजीव मूर्ति मान उन्हें सबका एकमात्र नेता मानते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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