श्रीकृष्णांक
अवतार का हेतु
परमेश्वर के सम्बन्ध में उपनिषदों से अनेक प्रकार से विवेचन किया गया है। प्राचीन ऋषि-मुनिगण अरण्य में निवास कर आध्यात्मिक विषयों का चर्चा करते हुए किस प्रकार अपने जीवन को बिताते थे, आर्षग्रन्थों में इसका बहुत ही मनोहर चित्रण मिलता है। शिष्य गुरु के समीप जाकर पूछता है- ‘महाराज ! परमेश्वर कैसा है ?’ गुरु कहते हैं- ‘परमेश्वर का वर्णन वाणी से नहीं किया जा सकता।’ शिष्य फिर पूछता है- ‘गुरुदेव ! आप जिसकी आराधना में इस प्रकार एकनिष्ठ होकर अपना जीवन बिता रहे हैं उसके विषय में आप जो कुछ जानते हैं, कृपा करके मुझसे कहिये। ‘गुरु कहने लगे- परमेश्वर जिस प्रकार जानना चाहिये उस प्रकार सम्पूर्ण रूप से मैं उसे नहीं जान सका हूँ। क्योंकि वह ऐसा अनिर्देश्य है कि बुद्धि उसका निर्देश नहीं कर सकती, वह ऐसा अचिन्त्य है कि जिसका चित्त से चिन्तन नहीं किया जा सकता, वह ऐसा अकथ्य है कि कथन करने से समझ में नहीं आता, वह ऐसा अदृश्य, अगोचर है कि आँखों से देखा नहीं जा सकता, मन से उसका मनन नहीं हो सकता और वह ऐसा अग्राह्य है कि किसी भी साधन से पकड़ में नहीं आता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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