कृष्णांक
व्रज परिचय
भगवान श्रीकृष्ण धन्य हैं, उनकी लीलाएं धन्य हैं, और इसी प्रकार वह भूमि भी धन्य है जहाँ वह त्रिभुवनपति मानव रूप में अवतरित हुए और जहाँ उन्होंने वे परम पुनीत अनुपम अलौकिक लीलाएं की जिनकी एक-एक झांकी की नकल तक भावुक हृदयों को अलौकिक आनन्द देने वाली है। श्रीकृष्ण को अवतरित हुए आज पांच सहस्त्र वर्ष से ऊपर हुए, परन्तु उनके कीर्तिगान के साथ-साथ उस परम पावन भूखण्ड की भी महिमा का सर्वदा बखान किया जाता है, जहाँ की रज को मस्तक पर धारण करने के लिये अब तक लोग तरसते हैं। बड़े-बड़े़ लक्ष्मी के लाल अपने समस्त सुख-सौभाग्य को लात मार यहाँ आ बसे, और व्रज के टुक मांगकर उदरपोषण करने में ही उन्होंने अपने आप को धन्य समझा। यही नहीं, अनेक भक्त हृदय तो वहाँ के टुकडों के लिये तरसा करते हैं। भगवान से इसके लिये वे प्रार्थना रकते हैं औडछे के व्यास बाबा गिडगिडाकर कहते हैं– ऐसो कब करिहौ मन मेरो । यह क्या बात है ? इस भूमि में ऐसा कौन-सा आकर्षण है जो अपनी ओर आकर्षित कर लेता है? भगवान श्रीकृष्ण ने यहाँ जन्म धारण किया था और नाना प्रकार की अलौकिक लीलाएं की थी क्या इसीलिये भक्तहृदय इससे इतना प्रेम करते हैं? हां, अवश्य ही यह बात है, पर केवल यही बात नहीं है, इसके साथ-साथ सोने में सुगन्ध यह और है कि इस भूमि को भी भगवान श्रीकृष्ण गोलोक से यहाँ लाये थे। जैसे भगवान के साथ-साथ देवी-देवता, ऋषि-मुनि, श्रुतियां आदि ने आकर गोप-गोपिकाओं का जन्म ग्रहण किया था। उसी प्रकार व्रज-भूमि भी श्रीगोकुलधाम से उनके साथ ही आयी थी, इस कारण इसकी महिमा विशेष है। पुराणों के अनुसार यह भूमि सृष्टि और प्रलय की व्यवस्था से बाहर है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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