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(लेखक- काव्यतीर्थ प्रोफेसर श्रीलौटुसिंह जी गौतम, एम. ए., एल. टी., एम. आर. ए. एस.)
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन विचित्रताओं से भरा हुआ है। उनकी लीलाएँ अनूठी हैं, बातें रहस्यमयी है, उपदेश निराला है, कथन-शैली अद्वितीय है, उनका तत्त्वज्ञान अद्भुत है और राजनीति अनोखी हैं उनके जीवन के जिस भाग पर दृष्टि डालिये, दिव्यता के दर्शन होंगे, जिस दृष्टि से देखिये, असाधारण प्रतीत होगा। मद्भागवत में आया है कि जब श्रीकृष्ण कंस की मल्लशाला में उतरे तो 'जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरति देखी तिन तैसी ।।' की सी हालत हो गयी। भक्तों ने उन्हें किसी और ही रूप में देखा, समालोचकों ने दूसरे ही रूप में, मित्रों और अनुयायियों ने उससे बिलकुल भिन्न रूप में शत्रुओं ने तो सर्वथा और ही रूप में। अब तक नाना प्रकार के लोग उन्हें नाना रूपों में देखा करते हैं। और उन्हें योगेश्वर समझकर योग में लग जाता है तो कोई उनकी रास लीला की लीला में लीन हो जाता है कोई उनके अमूल्य उपदेशों का अनुसरण कर अनन्त शक्ति लाभ करता है तो कोई श्रीकृष्ण का नाम ले-लेकर उच्छलता पूर्ण जीवन बनाता है और अन्त में सर्वनाश के समुद्र में गिरता है।
और तो और, वंशीधर के इस विविधतामय जीवन से विस्मय में पड़कर यहाँ तक कल्पना कर डाली है कि श्रीकृष्ण एक नहीं अनेक थे। गीता के वक्ता श्रीकृष्ण कोई और थे और वृन्दावन-विहारी श्रीकृष्ण कोई दूसरे। इसी प्रकार की और भी अनेक कल्पनाएँ उनके सम्बन्ध में की गयी है। पर इसमें कोई सन्देह नहीं कि श्रीकृष्ण का जीवन अलौकिक था। जो लोग सनातन-धर्म की शीतल छाया में अपना जीवन यापन करते हैं, उनके लिये तो वह परम पुरुष के पूर्ण अवतार स्वयं भगवान ही है और उदार-हृदय इतर धर्मावलम्बी भी, जो उन्हें अवतार नहीं मानते, भगवान श्रीकृष्ण को एक महापुरुष- अदभुत पुरुष ऐसा पुरुष जिससे अधिक श्रेष्ठ पुरुष कोई अब तक नहीं हुआ मानते है। इन सब बातों पर विचार करने के बाद श्रीकृष्ण क्या थे, उनकी लीला क्या थी, यह समझना मन-बुद्धि के परे का विषय हो जाता है, जो आध्यात्मिक साधना के द्वारा -अनुभव के द्वारा ही जाना जा सकता है, पर आजकल लोग तर्क की तली में पडे़ हुए बुद्धि वाद का बाजार गर्म है, इसीलिये उन लोगों को जो बुद्धि से आगे बढकर नहीं जा सकते या जाना ही नहीं चाहते वा यहाँ तक जाने में विश्वास नहीं करतें, प्रबल प्रमाणों और अखण्डनीय युक्तियों के अभाव में कभी सन्तोष हो ही नहीं सकता। इसलिये उनके सामने अपनी बातों को सप्रमाण और युक्तिसहित उपस्थित करना ही वाच्छनीय होंगे।
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