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(लेखक – श्रीजयदयाल जी गोयन्दका)
कुछ मित्र मुझसे भगवान श्रीकृष्णचन्द्र जी के अलौकिक प्रभाव के सम्बन्ध में लिखने के लिये अनुरोध करते हैं, परन्तु इस विषय पर विचार करने पर मुझे अपनी अयोग्यता प्रतीत होती है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रभाव का तो पूरा पता जब देवता और ऋषि-मुनियों को भी नहीं लगता तब मुझ-सरीखे साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है। इतना होने पर भी मैं अपने मन की प्रसन्नता और मित्रों के सुख के लिये अपनी साधारण समझ के अनुसार कुछ लिखने की धृष्टता करता हूँ। विज्ञ पाठकगण बालक समझकर त्रुटियों के लिये मुझे क्षमा करेंगे। भगवान श्रीकृष्ण साक्षात पूर्ण ब्रह्म के अवतार थे या यों कहिये कि साक्षात पूर्ण ब्रह्म ही श्रीकृष्ण रूप में प्रकट हुए हैं, उनके दिव्य गुण, प्रभाव और लीलाओं की आश्चर्यमयी उपदेशप्रद मधुर लीलाओं से हमारे प्राचीन ग्रन्थ भरे पड़े हैं। श्रीमद्भागवत, महाभारत, जैमिनीय अश्वमेध और अन्याय पुराण आदि में भगवान के प्रेम, प्रभाव और ऐश्वर्य की अलौकिक बातें स्थान-स्थान पर प्रसिद्ध हैं।
जन्मते ही चतुर्भुज रूप से प्रकट होकर फिर छोटा बालक बन जाना, यशोदा मैया को मुख के अन्दर ब्रह्माण्ड दिखलाना, गोपबालक और बछडों की नवीन सृष्टि करना, अक्रूरजी को मार्ग और जल के अन्दर एक ही साथ दोनों जगह एक ही रूप में दर्शन देना, कंस आदि महान असुरों को लीलामात्र से विनाश कर देना, गुरु ब्राह्मण और देवकी जी के मृत पुत्रों को ला देना, विविधरूपों से एक ही साथ सम्पूर्ण रानियों के महलों में निवास करना, द्रौपदी के स्मरण करते ही उसक चीर बढ़ा देना, दुर्वासाजी के आतिथ्य के समय संकटापन्न द्रौपदी के स्मरण करते ही अचानक वहाँ प्रकट हो जाना, कौरवों की सभा में विराटरूप दिखाना, प्रिय भक्त अर्जुन को भक्ति और ज्ञान का रहस्य समझाते हुए उसे विश्वरूप और चतुर्भुज रूप से दर्शन देना, अर्जुन की रक्षा के लिये जयद्रथ वध के समय सूर्य का अस्त दिखाकर फिर सूर्य को प्रकट कर देना, युद्ध के अन्त में अर्जुन को पहले रथ से नीचे उतारकर फिर स्वयं उतरते ही रथ का जलकर भस्म होते दिखलाना और यह कहना कि यह रथ तो भीष्म, द्रौणादि के वाणों से पहले ही दग्ध हो चुका था, परन्तु मैंने अपने संकल्प से इसे टिका रखा था, शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म की सारी पीड़ाओं को हरकर उन्हें अतुल बल, तेज और ज्ञान प्रदान करना, ऋषि उत्तंक को अपना अलौकिक प्रभाव और ऐश्वर्ययुक्त रूप दिखलाना, मृत परीक्षित को जीवित करना, अश्वमेधयज्ञ के समय पाण्डवों के स्मरण करते ही द्वारका से अचानक रात के समय आ जाना, सुधन्वा से लड़ते हुए अर्जुन के द्वारा याद करने पर तुरन्त उपस्थित होकर रथ की लगाम हाथ में ले लेना और शरीर सहित ही परमधाम पधारना आदि अनेकों अद्भुत कर्मों की कथाओं के पढ़ने से यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि ऐसे कर्म मनुष्य के लिये तो असम्भव हैं ही, देवताओं की शक्ति से भी अतीत हैं। इस छोटे-से लेख में अति संक्षोप के साथ भगवान के कुछ अद्भुत कर्मों का दिग्दर्शन कराया जाता है।
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