कृष्णांक
व्रज और व्रज-रज की महत्ता
मुक्ति कहत गोपाल सों, मेरी मुक्ति कराय । संसार में वे प्रदेश, प्रान्त और स्थान धन्य है जहाँ लीलामय भगवान ने स्वयं अवतार धारण कर समय-समय पर अनेकानेक लीलाएं की हैं, इन पवित्र स्थानों की चर्चा करने से ही अतीत की स्मृतियां आंखों के सामने आकर नाचने लगती हैं और अनायास ही हृदय में श्रद्धा और भक्ति के भाव उत्पन्न कर देती हैं। ऐसे स्थानों के दर्शन करने में आत्मा को जो शान्ति और उनमें भ्रमण करने में हृदय को जो आनन्द मिलता है, वह वर्णनातीत है। भारतवर्ष में व्रज की पवित्र भूमि को एक विशेष स्थान प्राप्त है, व्रज के एक-एक ग्राम एक-एक वन, पर्वत, वृक्ष अधिक क्या एक-एक रज-कण में पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की लीला का आभास मिलता है। व्रज और व्रज-रज की महत्ता पर समय-समय पर महात्माओं और सुकवियों ने अपने अनुभव युक्त मनोभाव प्रकट किये हैं, उनके कुछ उदाहरण पाठकों के मनोरंजनार्थ यहाँ पर दिये जाते हैं – |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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