श्रीकृष्णांक
पूर्णावतार श्रीकृष्ण
आदौ देवकिदेवगर्भजननं गोपीगृहे वर्धनम् । देवकी के गर्भ से भगवान ने जन्म लिया, बाद गोकुल में गोपियों के घर बडे़ हुए, मायावी पूतना के जीवन का कष्ट दूर किया, गोवर्धन पर्वत का उद्धारण किया, कंस तथा कौरवों का वध किया और कुन्ती के पुत्रों का पालन किया। इस प्रकार से श्रीमद्भागवत में श्रीकृष्ण की लीलाओं का अमृतमय वर्णन है। मैं भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार करके अपनी जीव-बुद्धि के अनुसार उनके परम पावन अवतार की मीमांसारूपी सेवा करना आरंभ करता हूँ। ईश्वर है और ईश्वर का अवतार होता है, यह श्रद्धा के साथ की गई कल्पनामात्र है और कुछ नहीं। इसमें सत्यता का नाम भी नहीं है। अवतार न कभी हुए और न कभी हो सकते हैं। अवतार की कल्पना के पीछे पड़ने में कोई लाभ नहीं। इस प्रकार का मत रखने वाले आधिभौतिक शास्त्रविद अपने शास्त्रज्ञान की सीमा के अन्दर ऐसे बंद हैं कि वे यह जानने का कभी विचार तक नहीं करते कि उस सीमा के बाहर भी कोई चीज है या नहीं। उनकी विचारसंकीर्णता ने उन्हें जड़ शास्त्र के अंदर ही ऐसा अटका रखा है कि जड़ शास्त्र के आगे बढ़कर कोई चैतन्य शास्त्र भी है, इसका उनहें कुछ पता ही नहीं लग पाता। ऐसे लोगों का अवतार संबंधी तत्वज्ञान जड़ इन्द्रियगम्य प्रदेश में ही सीमित रहता है, इसलिए वे ईश्वर और ईश्वरावतार के संबंध में कुछ भी विवेचन नहीं कर सकते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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