श्रीकृष्णांक
वेणु-गीत
यद्यपि प्रस्थानत्रयी में श्रीमद्भागवत का समावेश नहीं किया गया है तथापि वैष्णव आचार्यों ने यह बतलाया है कि श्रीमद्भागवत के बिना प्रस्थानत्रयी की सफलता नहीं है, अर्थात वेद, गीता और ब्रह्मसूत्र की भाँति श्रीमद्भागवत का भी आर्यों के रहस्यशास्त्रों में एक उत्तम स्थान है। कहा जाता है कि वेदों का विभाग, गीता और ब्रह्मसूत्रों की रचना करने पर भी श्रीव्यासजी के हद्य को शान्ति नहीं मिली तब उन्होंने अन्त में श्रीमद्भागवत की रचना कर शान्ति प्राप्त की। श्रीमद्वल्लभाचार्य श्रीभागवत को समाधि भाषा कहते है; इस ग्रन्थ की भाषा इतनी गूढ़ है कि साधारण पुरुष उसका अर्थ नहीं समझा सकता। वेद, गीता और ब्रह्मसूत्रों की परिभाषा से श्रीमद्भागवत की परिभाषा कहीं रमणीय और गूढार्थ से भरी हुई है, इसी से विद्या भागवतावधि कहा जाता है। पण्डितों की बुद्धि की परीक्षा वेद, गीता और ब्रह्मसूत्र में नहीं परन्तु भागवत में होती है। श्रीवल्लभाचार्यजी ने श्रीमद्भागवत को इतना अधिक महत्त्व दिया है कि उन्होंने यह ग्रन्थ जनता को समझाने के लिये भिन्न-भिन्न सात प्रकार से अर्थ बताये है। (1) समस्त ग्रन्थ का संक्षेप में रहस्य, (2) ग्रन्थ के बारह स्कन्धों में कौन से स्कन्ध में क्या रहस्य है (3) किस स्कन्ध में कितने प्रकरण है और उनका परस्पर क्या सम्बन्ध है और क्या रहस्य है, (4) किस प्रकरण में कौन कौन से अध्याय है और उनमें प्रत्येक अध्याय का क्या अर्थ है, अध्यायों में वर्णित भिन्न-भिन्न उपाख्यानों की परस्पर क्या संगति है और उनका क्या अर्थ है। इस भाँति चार प्रकार के अर्थ उन्होंने अपने तत्त्वदीप निबन्ध नामक ग्रन्थ के अन्तिम श्रीभागवतार्थ प्रकरण विभाग में किये है। शेष तीन प्रकार के अर्थ श्रीमदभागवत की श्रीसुबोधिनी-नाम्नी टीका में किये गये है। (1) मूलश्लोक वाक्य का अक्षरार्थ (2) प्रत्येक वाक्य के अर्थ और शब्दों का रहस्य (3) प्रत्येक पद के अन्दर के अक्षरों का अर्थ। इस प्रकार श्रीवल्लभाचार्यजी ने श्रीमदभागवत की महत्ता बहुत ही अधिक बढ़ायी है, यदि वे ऐसा प्रयत्न न करते तो जनता भारत के इस अग्रगण्य महान ग्रन्थ को कदाचित भूल गयी होती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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