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इसके पास दूसरी चरणपहाड़ी है जहाँ सखाओं ने श्रीकृष्ण के चरण धोये हैं और उस चरणोदक से चरणकुण्ड बन गया है जिसे चरणगंगा भी कहते हैं। यहीं किसी समय भगवान ने दही बिलोकर माखन निकाला है और राधाजी सखियों के साथ मिश्री लायी हैं और इस प्रकार भगवान तथा बलदेवजी का माखन-मिश्री का भोग लगा है जिसका प्रसाद सब गोपगोपियों में बांटा गया है। इसके आगे रसौली गांव है। यहाँ रासमण्डल का चौंतरा है। रसौलीकुण्ड भी है। पास ही दधिगांव है जहाँ भगवान ने दधिलीला की थी। यहाँ दधिकुण्ड और मधुसूदन कुण्ड हैं। ये सात सखियों के क्रीडा-स्थान हैं। श्रृंगार मन्दिर हैं। यहाँ वेणु-नाद के द्वारा भगवान ने दूर चली गयी गायों को बुलाया है। यहाँ रासमण्डल तथा सूर्यकुण्ड है। इसके आगे शेषशायी है, जहाँ दाऊजी ने शेषजी का और भगवान ने लक्ष्मीनारायण का रूप धारण करके सखाओं को दिखाया है। क्षीरसागर भी है। आगे यमुनाजी हैं। पास ही शेरगढ गांव है, जहाँ ऐंठा कदम्ब है, जिसके द्वारा वरुण ने दाऊजी के लिये वारुणी भेजी थी। यहाँ ही बलदेवजी ने रास के समय यमुनाजी को बुलाया था और उनके न आने पर अपने हल से अपनी ओर खींच लिया था। अब तक यहाँ यमुनाजी खिंची सी दिखलायी पड़ती है, इसी का नाम रामघाट या विलासवन है। यहाँ ब्रह्मघाट है। यहीं ब्रह्माजी ने तप करके बछडे़ चुराने का दोक्ष क्षमा कराया है। इसके आगे आभूषणवन है, जहाँ गोपियों ने भगवान का फूलों से श्रृंगार किया है।
फिर निवारणवन है, जहाँ निवाडे के फूल बहुत होते हैं। आगे गुंजावन है, जहाँ गोपियों ने गुंजा की माला बनाकर भगवान को पहनायी थी। उसके आगे अक्षयवट, संकेतवट तथा गोपीवट है, जहाँ भगवान ने गोपियों को सारी लीलाएं प्रत्यक्ष दिखायी। पास ही यमुना-तट पर तपोवन है, जहाँ भगवान राधा विरह से विह्वल हो गये हैं इसके आगे धीरघाट है। भगवान को पतिरूप में प्राप्त करने के लिये गोप-कन्याओं ने यहीं कात्यायनी-देवी का व्रत किया था। एक दिन जबकि वे नग्न होकर यमुना में स्नान कर रही थीं, भगवान इस नग्न-स्नान की कुप्रथा को हटाने के लिये एवं उनकी प्रेमा भक्ति बढाने के लिये, घाट पर से उनके वस्त्र उठाकर कदम्ब के ऊपर जा बैठे थे, और फिर गोपिकाओं की प्रार्थना पर उन्होंने उनके कपड़े लौटा दिये थे। यहाँ चीरविहारी ठाकुरजी तथा कात्यायनी देवी के मन्दिर हैं। इससे आगे नन्दघाट है, जहाँ नन्दराय जी को वरुणजी का दूत पकड़कर ले गया था और फिर श्रीकृष्ण वरुणलोक में जाकर उन्हें वापस लाये थे। नन्दजी के न मिलने से गोपों को भय हुआ था, इसलिये उस स्थान का नाम भयगांव पड़ गया था।
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