कृष्णांक
कृष्णावतार पर वैज्ञानिक दृष्टि
जिसने सब प्रकार के लौकिक सुख भेगते हुए भी अपना पूर्ण कर्तव्य पालन किया हो ? जो संसार में लिप्त दीखता हुआ भी आत्मविद्या का पारंगत हो ? जो जगत भर को अन्याय हटाने की चुनौती देता हुआ भी भय और चिन्ता से दूर रहे ? निःसंदेह ये परमानन्द परमात्मा के लक्षण हैं, जीवन काटि के बाहर की बात है। वेदान्त के ग्रन्थों में आनन्द का चिह्न ‘प्रेमास्पदत्व’ को माना है, आत्मा को आनन्दरूप इसी युक्ति से सिद्ध किया जाता है कि वह परम प्रेमास्पद है। औरों के साथ प्रेम ‘आत्मार्थ’ होने पर होता है, आत्मा में निरुपाधिक प्रेम है। भगवत में जब ब्रह्मा ने गोप, गोवत्सहरण किया था और भगवान ! श्रीकृष्ण ने सब गोप-वत्स अपने रूप से प्रकट कर दिये थे, उस प्रसंग में कहा है कि गौओं को व गोपों के पिता को उनमें बहुत अधिक प्रेम हुआ। परीक्षित के कारण पूछने पर शुकाचार्य ने यही कारण बताया कि आत्मा आनन्द रूप होने से परम प्रेमास्पद है, भगवान श्रीकृष्ण सबके आत्मा हैं, आनन्दमय हैं, अत उनके स्वरूप से प्रकट गोप-वत्सादि में अत्यधिक प्रेम होना ही चाहिये। अस्तु, जिसमें अधिक प्रेम हो, वह आनन्दमय होता है, यह इस प्रसंग से सिद्ध हुआ। इस लक्षण के अनुसार परीक्षा करें तो भी भगवान श्रीकृष्ण की आनन्दमयता पूर्णरूप से सिद्ध होती है। जैसा प्रेम का प्रवाह उन्होंने बहाया था, ऐसा किसी ने नहीं बहाया। बाल्यकाल से ही सब उनके प्रेम से बँध गये थे। व्रज के खग, मृग, लता भी वंश की ध्वनि से प्रेमोन्मत्त हो जाते थे। गोप, गोपांगनाएँ अपने कुटुम्बियों से प्रेम छोड़ उनसे प्रेम करते थे। जो असुर भाव से दबे हुए थे उन्हें छोड़ श्रीकृष्णप्रेम का प्रवाह भूमण्डल को प्यावित कर चुका था। शत्रु भी क्षणमात्र उनके प्रेम से आकृष्ट हो जाते थे- यह हम लिख चुके हैं। उस दिन ही क्यों ? आज भी सब श्रेणी के, सब धर्मों के, सब जाति के मनुष्यों को जितना प्रेम भगवान श्रीकृष्ण पर देखा जाता है, उतना किसी पर नहीं देखा जाता। एक गवैया यदि गान का अभ्यास करता है तो पहले श्रीकृष्ण उसकी जबान पर आते हैं, किसी जाति का कोई ऐसा अभागा गायक न होगा- जिने श्रीकृष्ण के पद न गाये हों, तुकबन्दी वालों तक कोई ऐसा कवि न होगा- जिसने श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में कभी अक्षर न जोड़े हों। चित्रकला पर जिसने जरा भी हाथ जमाया है, वह श्रीकृष्ण की मूर्ति एकाध बार अवश्य लिख चुका होगा, मूर्ति बनाने का शिल्प जानने वाला प्रायः ऐसा नहीं मिलेगा जिसने मूर्ति कभी न बनायी हो। धार्मिक, भक्त, विलासी-रसिया, राजनैतिक, रिफार्मर-न्यूजैण्टलमैन, दार्शनिक, निरपेक्ष- सबके कमरों में या महान की दीवारों पर किसी न किसी रूप में आप नजर आ जायँगे। ताना री-री करने वाले छोटे बच्चे, कुमार, किशोर, मार्ग में अलापते हुए तानसेन को मात देने की इच्छा रचाने वाले रसिया, खेतों के किसान, गाँवों की भेली-भाली स्त्रियाँ- सबकी जिह्वा पर किसी न किसी रूप में आपका नाम विराजित सुन पड़ेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |