कृष्णांक
कृष्णावतार पर वैज्ञानिक दृष्टि
भय, चिन्ता व शोक को कभी पास न फटकने दिया। बाल्यकाल में ही नित्य कंस के भेजे असुर मारने को आ रहे हैं, किन्तु खेल-तमाशों में ही उन्हें ठिकाने लगाया जाता है। कंस जैसा घोरकर्मा पात की ताक में है, किन्तु यहाँ गोवत्सों को चराने के मिष से गोप सखाओं के साथ वंशी के स्वरों में राग अलापे जा रहे हैं। गोपियों के घरों का माखन उड़ाया जा रहा है, चीर हरण का विनोद हो रहा है, रासलीला रची जा रही है। वर्तमान सभ्यता के अभिमानी जो महाशय इन चरित्रों पर आक्षेप करते हैं वह श्रीकृष्णावतार का रहस्य नहीं समझते। इन लीलाओं में धर्मातिक्रम क्यों नहीं है- इस विवाद को हम इस लेख में नहीं उठा सकते- यह एक स्वतन्त्र लेख का विषय है, किन्तु इतना अवश्य कहेंगे कि यदि ये लीलाएँ न होतीं तो भगवान श्रीकृष्ण पूर्णावतार या साक्षात भगवान न कहाते, आनन्द की पूर्ण अभिव्यक्ति उनमें न मानी जा सकती। आगे यौवनचरित्रों में भी दुष्टों का संहार भी हो रहा है, राज्य की उन्नति भी हो रही है, और जो-जो सुन्दरी अपने में अनुरूप सुनी जाती है, उनके साथ विवाहों का आयोजन भी चल रहा है। सब प्रकार के झंझट भी सुलझाये जा रहे हैं और राजधानी को पूर्ण समृद्धिमय बनाकर अनेक रानियों के साथ आदर्श गार्हस्थ्य सुख का उपभोग भी हो रहा है। पारिजात वृक्ष लोकर सत्यभामा के मान का भी अनुरोध रखा जा रहा है, भूमि को स्वर्गरूप भी बनाया जा रहा है, अर्जुन जैसे मित्रों के साथ सैर का आनन्द भी लूटा जा रहा है। कदाचित् कोई मनचले महाशय प्रश्न करें कि बहुत से पुरुष मद्यपानादि में व अनेक स्त्रियों के सहवास में- ऐशो आराम में ही अपना जीवन बिताना जीवन का लक्ष्य मानते हैं- क्या उन्हें भी ईश्वर का पूर्णावतार समझा जाय, तो उत्तर होगा कि हाँ, समझा जा सकता था, यदि वे अपने धर्म से विच्युत न होते, यदि सब प्रकार के ऐशो आराम में रहकर भी उनमें निर्लिप्त रह सकते, यदि विनोदमय रहकर भी अपने कर्तव्य को न भूलते, यदि लौकिक और पारलौकिक उन्नति से हाथ न धोते, यदि सब कुछ भोगते हुए भी क्षणमात्र में सबको छोड़कर कभी याद न करने की शक्ति रखते, यदि ऐसे भोग के परिणाम-रूप में नाना आधि-व्याधि व भयानक शोक, मोह आदि से ग्रस्त न होते, यहद पूर्ण समृद्धानन्द भोगते हुए भी शान्त्यानन्द में निमग्न रहते, यदि उस दशा में भी अपने अनुभव के-अपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं ऐसे सच्चे उद्गार निकालकर संसार को शान्ति समुद्र में लहरा सकते। क्या संसार में कोई जीव ऐसा दृष्टान्त है जिसके जीवन में दुःख का स्पर्श भी न हुआ हो ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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