कृष्णांक
कृष्णावतार पर वैज्ञानिक दृष्टि
अब पाँचवीं सबसे उत्कृष्ट अव्यय की (प्रथम) कला आनन्द है, वही ब्रह्म का मुख्य स्वरूप बताया गया है- ‘रसो वै सः’। इसका पूर्ण विकास अन्य अवतारों मे भी नहीं देखा जाता। भगवान श्रीरामचन्द्र में अन्य सब कलाओं का विकास है, किन्तु आनन्द का सर्वांश में विकास नहीं है। उनका जीवन ‘उदासीनतामय’ है, उनमें शात्यानन्द है, किन्तु भगवान श्रीकृष्ण में आनन्द के सब रूपों का पूर्ण विकास है। आनन्द के दो भेद हैं- एक समृद्धयानन्द, दूसरा शान्त्यानन्द। जिस समय मनुष्य को किसी इष्ट वस्तु- धन की प्राप्ति होती है तो उसका चित्त प्रफुल्लित होता है, उस प्रफुल्लता का मनोवृत्तिरूप आनन्द वा समृद्धयानन्द कहा जाता है। यह प्रफुल्लता थोड़े काल रहती है, आगे वह इष्ट वस्तु- धन-पुत्रादि मौजूद रहती है- किन्तु वह चित्तविकास वह प्रफुल्लता नहीं रहती, अब वह समृद्धयानन्द शान्त्यानन्द रूप में परिणत हो गया, निर्धन की अपेक्षा धनवान को, अपुत्र की अपेक्षा पुत्रवान को अधिक आनन्द है, किन्तु उस आनन्द का सर्वथा अनुभव नहीं। चित्तविकास सदा नहीं रहता। बस, अनुभव काल में चित्तविकास दशा में समृद्धयानन्द और अनुभव में न आने वाला, मनोवृत्ति से गृहीत न होने वाला आनन्द शान्त्यानन्द कहाता है। मन में इच्छारूप तरंग न उत्पन्न होने की दशा में वा दुःख-निवृत्ति दशा में भी शान्त्यानन्द ही होता है। शान्त्यानन्द के ब्रह्मानन्द, योगानन्द, विद्यानन्द आदि भेद पन्चदशी आदि ग्रन्थों में बताये गये हैं और समृद्धयानन्द के मोद, प्रमोद, प्रिय आदि भेद तैत्तिरीयोपनिषद् में आनन्दमय के सिर, पक्ष आदि के रूप से कहे गये हैं। अभिमत वस्तु के दर्शन में ‘प्रिय’ रूप आनन्द होता है- ऐसी भाष्यकारों की व्याख्या है। अस्तु, शान्त्यानन्द तो ईश्वर के प्रायः सभी अवतारों में रहता है, क्योंकि ईश्वर है ही आनन्दरूप, किन्तु भेग-लक्षण समृद्धयानन्द का भगवान श्रीकृष्ण में ही पूर्ण विकास है। चित्तविकास रूप आनन्द की पूर्ण मात्रा हमारे चरितनायक में ही है। अनेक ग्रन्थों में संक्षेप या विस्तार से भगवान श्रीकृष्ण का जीवनचरित लिखा गया है, किन्तु कहीं आपके जीवन में ऐसा अवसर दिखायी नहीं देता- जहाँ आप हाथ पर कपोल रखकर किसी चिन्ता में निमग्न हों, जीवनभर में कोई दिन ऐसा नहीं- जिस दिन आप शोकाक्रान्त हो आँसू बहा रहे हों ! कैसे भी झंझट सामने आये हों, सबको खेल तमाशों में ही आपने सुलझाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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