कृष्णांक
कृष्णावतार पर वैज्ञानिक दृष्टि
ताना री-री करने वाले छोटे बच्चे, कुमार, किशोर, मार्ग में अलापते हुए तानसेन को मात देने की इच्छा रचाने वाले रसिया, खेतों के किसान, गाँवों की भेली-भाली स्त्रियाँ- सबकी जिह्वा पर किसी न किसी रूप में आपका नाम विराजित सुन पड़ेगा। और तो क्या, होली के उन्माद से उन्मत्त जनता भी आपके ही यश को अपनी वाणी पर नचाती है। भक्त लोग अपना सर्वसव समझकर, धार्मिक लोग धर्मरक्षक समझकर, विलासी विलास के आचार्य समझकर, दार्शनिक गीता के प्रवक्ता समझकर, राजनैतिक नीति के पारंगत समझकर, देशहितैषी देशोद्धारक समझकर और गोसेवक गोपाल समझकर समय-समय पर आपका स्मरण करते हैं। साम्प्रदायिक भेद रहते भी वैष्णव विष्णु का पूर्णवतार मानकर, शाक्त आद्याशक्ति का अवतार कहकर और शैव शिव का अनन्य समझकर आपको भजते हैं। शिव, विष्णु, शक्ति की उपासना में चाहे मतभेद रहे, श्रीकृष्ण मूर्ति की ओर सबका झुकाव है। भारत के ही नहीं अन्यान्य देशों के लोग भी श्रीकृष्ण प्रेम से प्रभावित हुए हैं, आपके उपदेशों का और आपके वरितों का रूपान्तर में आदर सब देशों में हुआ है।[1] मुसलमानों में रसखानि, खानखाना, नवाज, ताजबेगम आदि की बात तो प्रसिद्ध ही है। वर्तमान युग के ईसाइयों में भी कई विद्वानों ने इस बात की चेष्टा की है कि क्राइस्ट को श्रीकृष्ण का रूपान्तर सिद्ध किया जाय। आजकल के महात्मा गाँधी के अनुयायी महातमा गान्धीजी का चित्र सुदर्शन हाथ में देकर या गोवर्धन- पर्वत भुजा पर रखकर श्रीकृष्ण रूप में देखने को उत्सुक हैं। यह बात क्या है ? क्यों श्रीकृष्ण के प्रेम का प्रवाह सबको आलुप्त कर रहा है। उत्तर स्पष्ट है कि वे आनन्दरूप हैं, सर्वात्मा हैं, परब्रह्म हैं, इसलिये प्राकृतिेक रूप से सबको विवश होकर उनसे प्रेम करना पड़ता है। आसुर भावावेश से जिनके अन्तरात्मा पर आवरण है उनकी बात तो सदा ही निराली है। अस्तु, अव्यय पुरुष की पाँचों कलाओं का विकास भगवान श्रीकृष्ण में परिपूर्ण है, यह संक्षेप में दिखा दिया गया। ब्रह्म के अन्य विश्वचररूप प्रतिष्ठा, ज्योतिः आदि जो पूर्व लिखे गये हैं, उनका विकास पाठक स्वयं विचार सकते हैं। अब क्षर की आध्यात्मिक कलारूप स्वयम्भू असदि पाँच अवतार जो पूर्व लिख आये हैं उनके प्राणरूप शक्तियों का आविर्भाव संक्षेप में भगवान श्रीकृष्ण में बताकर यह लेख पूर्ण किया जाता है। पूर्व कहा जा चुका है कि परमेष्ठिमण्डल विष्णु प्रधान है और भगवान श्रीकृष्ण विष्णु के ही अवतार माने जाते हैं, अतः परमेष्ठिमण्डल के सम्बन्ध पर ही मुख्यतया विचार किया जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ किस किस देश में किस किस रूप से श्रीकृष्ण चरित व्याप्त है इसका विस्तृत विवरण जिन्हें देखना हो वे जयपुर के धर्म मित्र जी की लिखी 'धर्मदुवाकर' नाम की पुस्तक देखे।
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